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सरसंघ संचालक मोहन भागवत के बयान के निहतार्थ – रघु ठाकुर

रघु ठाकुर

सरसंघ संचालक मोहन भागवत को अपने विषय से इतर शोध निष्कर्ष निकालने का विशेष अभ्यास है। अभी कुछ समय पूर्व उन्होंने एक बयान में कहा था कि देश के सभी हिन्दू और मुसलमानों का डी.एन.ए. एक है। जिसकी कुछ चर्चा भी देश में सकारात्मक ढंग से हुई थी परन्तु अचानक 30 जुलाई को उनका नया शोध निष्कर्ष समाचार पत्रों में आया जिसमें उन्होंने कहा कि मुसलमानों ने 1930 से ही अपनी आबादी बढ़ाने की योजना तैयार कर ली थी, ताकि भविष्य में देश का विभाजन हो सके।

यह सुविदित तथ्य है कि, भारत की राजधानी दिल्ली में अंग्रेजों के पूर्व आखिरी शासक के रूप में बहादुरशाह जफर थे, जिन्हें गिरफ्तार कर अंग्रेजों ने जेल में डाला था। उस समय अंग्रेजों की संख्या देश की आबादी की तुलना में भी नगण्य थी और मुस्लिम आबादी की तुलना में भी नगण्य थी। अगर मुस्लिम जमात धार्मिक रूप से इतनी संगठित या काबिल होती तो क्या दिल्ली की गद्दी उनके हाथ से छिन पाती।

दूसरा पहलू यह है कि देश के बंटवारे की माँग मुस्लिम लीग और हिन्दू महासभा दोनों ने की थी। स्व. सावरकर भी यह मानते थे कि हिन्दू एवं मुसलमान दो राष्ट्र है जो एक नहीं रह सकते। और जो दिव्यज्ञान डा.मोहन भागवत को हुआ है, वह स्व. सावरकर और संघ के संस्थापक स्व. केशव बलीराम हेडगेवार को भी रहा होगा। अब अगर मुसलमान अपनी आबादी विभाजन की योजना के लिए बढ़ा रहे थे तो इन लोगों ने भी अपनी संख्या बढ़ाने के प्रयास किए होंगे। और अगर जानते हुए भी नहीं किए तो क्या वे भी डा.भागवत की परिभाषा के अनुसार गुनहगार नहीं कहे जाएंगे।

जब अंग्रजों ने भारत विभाजन का प्रस्ताव रखा था तब यह ऐतिहासिक तथ्य है कि महात्मा गाँधी ने उसका पुरजोर विरोध किया था। तथा बापू के आग्रह पर कांग्रेस पार्टी की विशेष कार्यकारिणी की बैठक बुलाई गई थी। जिसमें महात्मा गाँधी के विभाजन को स्वीकार न करने का प्रस्ताव नेहरू पटेल के समूह ने न केवल अमान्य कर दिया था बल्कि गाँधी लगभग इस मसले पर अकेले थे। उस कार्यकारिणी की बैठक का विस्तृत विवरण स्व. डा.राम मनोहर लोहिया ने अपनी पुस्तक ‘‘भारत विभाजन के अपराधी’’ जो एक प्रकार से मौलाना अब्दुल कलाम आजाद की पुस्तक ‘‘इंडिया विन्स फ्रीडम’’ के कुछ गलत तथ्यों का उत्तर देने के लिए लिखी गई थी, में सविस्तार बताया गया है। महात्मा गाँधी के साथ कार्यकारिणी के सदस्यों में सीमान्त गाँधी ही मजबूती से खड़े रहे थे। और इसीलिए जब महात्मा गाँधी को अलग थलग कर कांग्रेस ने विभाजन का प्रस्ताव स्वीकृत किया तथा सीमान्त गाँधी का इलाका बलूचिस्तान धार्मिक आबादी के आधार पर पाकिस्तान के भाग के रूप में मंजूर कर दिया तो सीमांत गाँधी ने भावुक होकर सार्वजनिक बयान दिया था कि ‘‘हमें भेड़ियों के हवाले कर दिया’’। उस समय न हिन्दू महासभा ने और न राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भारत विभाजन का सक्रिय विरोध तो दूर शाब्दिक विरोध तक नहीं किया। डा.मोहन भागवत अपने संघ के प्रस्तावों को देख लें। वे झूठ बोल सकते हैं तथ्यों को तोड़ मरोड़ करने का प्रयास कर सकते हैं, परन्तु इतिहास को नहीं बदल सकते हैं।

मैं परिवार नियोजन के पक्ष में हूं और चाहता हूं कि देश में आबादी के विस्फोट को नियंत्रण करने के लिए कानून बनना चाहिए जो सभी धर्मावलंबियों पर समान रूप से लागू हो। सरकार की नीतियों या कार्यक्रमों का लाभ उन परिवारों को ही दिया जाए व सरकार की नौकरियों में भी उन्हीं परिवारों को प्राथमिकता दी जाए, सरकार व बैंकों के कर्ज भी उन्हें ही दिए जाए जो परिवार नियोजन को स्वीकार करते हों। परिवार नियोजन की शर्तों का पालन करने वाले परिवारों को योजनाओं के लाभ देने में धर्म कोई शर्त नहीं होनी चाहिए। परन्तु क्या राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ परिवार नियोजन के पक्ष में है? या वह केवल अपने शाब्दिक षड़यंत्र के द्वारा हिन्दुओं के मन में ज़हर भर कर उनका मतदाता के रूप में इस्तेमाल और शोषण करना चाहता है तथा केन्द्र और सूबों की सरकारों को कब्जे में रखना चाहता है। 1995 के समय जब मध्यप्रदेश में कांग्रेस सरकार थी तथा श्री दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री थे, तब उस सरकार ने पंचायतों में परिवार नियोजन की पूर्ति को बाध्यकारी बनाया था तथा यह निर्णय किया था कि, इस कानून के बाद अगर किसी के दो से अधिक बच्चे होंगे तो वह पंचायतों, ब्लाक या जिला पंचायतों के चुनाव नहीं लड़ सकेगा। 1999-2000 में केन्द्र में भाजपा सरकार बनी थी। श्री अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे श्री लालकृष्ण आडवाणी गृहमंत्री थे परन्तु उन्होंने परिवार नियोजन के प्रस्ताव को विधानसभा व लोकसभा तथा अन्य राज्यों में लागू नहीं किया। इतना ही नहीं तत्कालीन सरसंघ संचालक स्व. के.पी. सुदर्शन ने तो परिवार नियोजन के खिलाफ खुला अभियान चलाया, सार्वजनिक बयान दिए कि हिन्दुओं को ज्यादा बच्चे पैदा करना चाहिए। और जब म.प्र. में 2003 के बाद भाजपा सरकार सत्ता में आयी तो उसने परिवार नियोजन के उस कानून को ही खत्म कर दिया जिसे दिग्विजय सिंह सरकार ने बनाया था।

श्री मोहन भागवत का परिवार नियोजन संबंधी बयान कोई आकस्मिक बयान नहीं है बल्कि एक सोची समझी रणनीति है जो आम हिन्दू मानस में जहर के बीज बोकर अपनी सरकारों को बचाना चाहते हैं। एक दिन सुबह मैं तब चौक गया जब मेरे एक परिजन ने चाय पीते-पीते अचानक यह कहा कि देश में मुसलमान घुस आयें हैं और मुसलमान देश की सत्ता पर कब्जे के लिए ज्यादा बच्चे पैदा कर रहे हैं। चूंकि वे मेरे परिवार के ही थे अतः मुझे जानकारी थी और मैंने उनसे पूछा कि आपके दादा के दस बच्चे थे आपके नाना के 12 बच्चे हुए आपके ससुर के 7-8 बच्चे हैं। अपने पड़ोस के कुछ नामों को उद्धरण करते हुए बताया कि कई हिन्दुओं के आठ एवं उससे अधिक बच्चे हैं तो क्या आप इन सबको मुसलमान मानते हैं? जाहिर है कि उनके पास कोई उत्तर नहीं था।

परन्तु जो मेरी मूल चिंता है वह यह कि इन नौजवानों के दिमाग में अचानक यह विष कहां से आया? मैंने कुछ गहरायी में जाने का प्रयास किया तो मालूम हुआ कि 31 जुलाई के बयान से श्री मोहन भागवत ने उनके मन में यह ज़हर भरा है कि मुसलमान देश में घुस आए हैं और ज्यादा बच्चे पैदा कर रहे हैं।

मैं जानता हॅू कि ज़हर व फितूर दोनों तरफ है और कुछ मुस्लिम भाई भी मजहब के नाम पर परिवार नियोजन का विरोध करते हैं तथा उसी प्रकार का जहर बोते हैं जो संघ के मुखिया बोते हैं। ओवैसी जैसे लोग तो संघ और भाजपा के खिलौने ही हैं जो अपने कट्टरपंथी बयानों से हिन्दू धु्रवीकरण करते हैं। मेरी समझ है कि दो कारणों से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने 2022 के उत्तर प्रदेश चुनाव और फिर उसके बाद के संसद के चुनाव को जीतने के लिए जो रणनीति तैयार की है उसी का एक हिस्सा श्री मोहन भागवत जी के द्वारा चलाया गया तीर है। एक तो उत्तर प्रदेश के चुनाव में जो मुश्किल से 7-8 माह में होना है, हिन्दू मतों का धु्रवीकरण हो ताकि पुनः संघ नियंत्रित सरकार वापिस आए। दूसरे राष्ट्रीय राजनीतिक घटनाक्रम के जो संकेत मिल रहे हैं उनके अनुसार सुश्री ममता बनर्जी भाजपा के विकल्प के रूप में केन्द्र बिन्दु हो सकती है। इसलिए उन्हें मुस्लिम परस्त बताने के लिए आबादी नियंत्रण का झुनझुना बजाना शुरू किया गया है। पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में भी भाजपा और संघ के मित्रों ने ममता बनर्जी को मुसलमान घोषित कर दिया था। यहां तक कि सेाशल मीडिया पर कुछ फर्जी समूह बनाकर यह भी समाचार डाले गए थे कि उन्होंने इस्लाम स्वीकार कर लिया है और उन्हें कोई बेगम नाम (मुस्लिम नाम) दिया गया था। हालांकि उसी संघ के लिए जब श्री नरेन्द्र मोदी बगैर निर्धारित कार्यक्रम के पाकिस्तान पहुंचते हैं, वहां वे प्रधानमंत्री की माँ के पैर छूते हैं, बनारस की साड़ियां भेंट करते हैं, तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं होती। श्री लालकृष्ण आडवाणी के जिन्ना की मजार पर श्रद्धांजलि देने की राष्ट्रीय शिष्टाचार की पूर्ति के अपराध में उनका राजनीतिक जीवन समाप्त कर दिया गया। परन्तु श्री नरेन्द्र मोदी उन्हें हिन्दू राष्ट्र के महान विजेता हैं क्योंकि आज उनके माध्यम से ही संघ सत्ता दिल्ली और देश को नियंत्रित कर रही है।

अपने तात्कालिक राजनैतिक स्वार्थ के लिए डा.मोहन भागवत भूल रहे हैं कि मनों में जहर घोलने का जो खेल उन्होंने शुरू किया है उसके भविष्य में कितने गंभीर परिणाम हो सकते हैं? अगर वे परिवार नियोजन के लिए ईमानदार हैं तो उन्हें केन्द्र सरकार को बाध्य करना चाहिए कि वे देश में परिवार नियोजन के लिए निरपेक्ष व बाध्यकारी कानून बनाए। इतिहास को विकृत करने का प्रयास न करें। अंग्रेजों ने देश के इतिहास को विकृत कर फूट डालने और राज करने का षड़यंत्र किया था जो अंततः असफल हुआ और उन्हें जाना पड़ा। यह पुनरावृत्ति लोकतंत्र में कभी भी हो सकती है।

 

सम्प्रति- लेखक श्री रघु ठाकुर देश के जाने माने समाजवादी चिन्तक है।प्रख्यात समाजवादी नेता स्वं राम मनोहर लोहिया के अनुयायी श्री ठाकुर लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के संस्थापक भी है।