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अगर आप लाइफ इंश्‍योरेंस पॉलिसी लेने जा रहे हैं तो पहले समझ लें अंडरराइटिंग की प्रक्रिया….

लाइफ इंश्योरेंस का बिजनेस जोखिम के खिलाफ संरक्षण से जुड़ा हुआ बिजनेस है। लाइफ इंश्योरेंस खरीदते समय आपके दिमाग में ये बात रहती है कि किसी दुर्घटना में आपकी दुर्भाग्यपूर्ण मौत हो जाने पर पॉलिसी से आपके परिवार को वित्तीय सुरक्षा मिल जाएगी। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो आपके दिमाग में ये बात रहती है कि आपकी मौत के बाद आपके परिवार के पास किसी तरह का फाइनेंशियल सपोर्ट नहीं रह जाएगा। इसके लिए आप प्रीमियम का भुगतान करते हैं।
इसी तरह, बीमा कंपनी भी ग्राहकों को पॉलिसी इश्यू करने के अपने हर दिन के ऑपरेशन्स से जुड़े जोखिम से खुद को बचाती है। जिस प्रकार एक लाइफ इंश्योरेंस कंपनी आपके लिए फाइनेंशियल रिस्क मैनेजर का काम करती है, उसी प्रकार रीइंश्योरेंस कंपनी इंश्योरेंस कंपनियों के वित्तीय जोखिम को प्रोटेक्ट करती है। ये रिइंश्योरेंस कंपनियां लाइफ इंश्योरेंस कंपनियों के लिए कुछ गाइडलाइंस तय करती है। लाइफ इंश्योरेंस कंपनियों को ग्राहकों को पॉलिसी इश्यू करते समय इन्हीं गाइडलाइंस को फॉलो करना होता है। इसके तहत लाइफ इंश्योरेंस कंपनियां इंश्योरेंस पॉलिसी खरीदने वाले हर व्यक्ति से जुड़े रिस्क का आकलन करती हैं और उस रिस्क के एवज में एक उचित प्रीमियम दर तय करती हैं। संक्षेप में कहा जाए तो अंडरराइटिंग वह प्रोसेस होता है जिसके तहत लाइफ इंश्योरेंस कंपनियां किसी पॉलसी के लिए ग्राहक की एलिजिबिलिटी तय करती हैं। यह लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी इश्यू करने के सबसे अहम पहलुओंमें शामिल है क्योंकि जोखिम के सावधानीपूर्वक और सटीक आकलन से लाइफ इंश्योरेंस कंपनियों को अपने ग्राहकों को सबसे अच्छी सर्विस उपलब्ध कराने, नए समाधान ढूंढने, अधिक-से-अधिक लोगों को पॉलिसी इश्यू करने और प्रभावी तरीके से क्लेम सेटल करने में मदद मिलती है। लाइफ इंश्योरेंस कंपनी आपकी उम्र, इनकम, पेशा, लाइफस्टाइल, पहले की मेडिकल कंडीशन, वजह, बॉडी मास इंडेक्स इत्यादि जैसे पहलुओं को ध्यान में रखते हुए आपकी पॉलिसी की एलिजिबिलिटी का आकलन करती है। इन पैरामीटर्स को ध्यान में रखते हुए कंपनियां अंडरराइटिंग को दो प्रमुख श्रेणियों में वर्गीकृत करती हैंः

फाइनेंशियल अडरराइटिंग

कंपनी आपकी इनकम, जॉब, लाइफ के स्टेज और पॉलिसी की अवधि के लिए प्रीमियम का भुगतान करने की आपकी क्षमता पर विचार करती है ताकि यह निर्धारित किया जा सके कि आप जिस लाइफ कवर को खरीदना चाहते हैं वह आपकी और आपके आश्रितों की जरूरतों के अनुसार है या नहीं।

मेडिकल अंडरराइटिंग

इंडस्ट्री में इसे आम तौर पर ‘मोर्टलिटी असेसमेंट’ कहा जाता है। अंडरराइटिंग का यह पहलू आपकी उम्र, लाइफस्टाइल, धूम्रपान, शराब पीने जैसी आपकी लाइफस्टाइल से जुड़ी आदतों से जुड़ा होता है। इसके साथ ही इसका मकसद आपकी फैमिली हिस्ट्री के आधार पर इस चीज का आकलन करना होता है कि आपको किसी तरह की बीमारी से ग्रस्त होने की आशंका तो नहीं है।

फाइनेंशियल अंडरराइटिंग

फाइनेंशियल अंडरराइटिंग वह प्रक्रिया है जिसका इस्तेमाल इंश्योरेंस कंपनी इस चीज की गणना के लिए करती है कि आपके लिए कितने रकम का लाइफ कवर पर्याप्त होगा। आप जब एक निश्चित रकम का लाइफ कवर खरीदने को लेकर रुचि दिखाते हैं तो इंश्योरेंस कंपनी आपकी वित्तीय स्थिति का पूरा विश्लेषण करती है। इस चरण में आपको सैलरी स्लिप, बैंक स्टेटमेंट, टेलीफोन बिल, बिजली का बिल, पासपोर्ट, आधार कार्ड, इनकम टैक्स रिटर्न जैसे दस्तावेज देने पड़ते हैं। अगर आपके नाम से पहले से कोई इंश्योरेंस पॉलिसी है तो आपको उसका भी विवरण देना पड़ता है। हालांकि, कुछ ग्राहक इस पूरे प्रोसेस को काफी परेशानी भरा मानते हैं लेकिन इससे आपकी इंश्योरेंस कंपनियों को आपके पूरे रिस्क प्रोफाइल का आकलन करने में मदद मिलती है। कई बार ऐसा होता है कि आप जरूरत से ज्यादा लाइफ इंश्योरेंस का आकलन कर लेते हैं और इसके लिए आपको बिना मतलब ज्यादा प्रीमियम देना पड़ता है। इसके विपरीत अगर आप अपनी जरूरत से कम पॉलिसी लेने की सोचते हैं तो कंपनी आपक बेहतर वैल्यू वाली पॉलिसी की पेशकश करती है। फाइनेंशियल अंडरराइटिंग आपको इनमें से किसी भी नुकसान से बचने में मदद करते हैं और आपको बेहतर सर्विस मिल जाती है। मेडिकल अंडरराइटिंगः अपने डॉक्टर…और लाइफ इंश्योरेंस प्रोवाइडर से कोई भी बात नहीं छिपानी चाहिएः पॉलिसी खरीदते समय मेडिकल हिस्ट्री को लेकर सभी तरह की जानकारी दिए जाने की अहमियत को किसी भी तरह से कम करके नहीं आंका जा सकता है। इसमें आपके द्वारा नियमित तौर पर ली जाने वाली दवाई, पहले कभी अस्पताल में भर्ती कराए जाने, भविष्य में होने वाली छोटी या बड़ी सर्जरी एवं पहले से मौजूद मेडिकल कंडीशन से जुड़ी जानकारियां शामिल हैं। जब आप लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी के लिए अप्लाई करते हैं तो कंपनी का एक प्रतिनिधि आपको मेडिकल टेस्ट्स और/ या सैंपल कलेक्ट करने के लिए कॉल करता है। ये टेस्ट्स काफी अहम होते हैं क्योंकि इन टेस्ट की रिपोर्ट उस समय की आपकी सेहत की तस्दीक करती है। टेस्ट के रिजल्ट से आपके प्रीमियम के निर्धारण से लेकर क्लेम सेटलमेंट तक हर चीज तय होता है। पॉलिसी इश्यू करते समय इन सभी पहलुओं को ध्यान में रखा जाता है। अगर आपके मेडिकल टेस्ट्स की रिपोर्ट और पॉलिसी अप्लाई करते समय आपके द्वारा दी गई जानकारी में किसी तरह का अंतर पाया जाता है तो इससे पॉलिसी इश्यू होने में बिना मतलब की देरी होती है और यहां तक कि आपका अप्लीकेशन रिजेक्ट हो जाता है। इसके साथ ही जब आप नियमों एवं शर्तों को लेकर हामी भर देते हैं तो ये माना जाता है कि आप अपनी मेडिकल हिस्ट्री को लेकर ट्रांसपैरेंट थे। इसे ‘सबसे अधिक विश्वास’ के तौर पर देखा जाता है। पॉलिसी खरीदते समय स्वास्थ्य से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी को जानबूझकर नहीं बताने से आपके क्लेम सेटलमेंट का प्रोसेस प्रभावित होता है। इंश्योरेंस पॉलिसी खरीदने वाले कुछ बायर्स को लगता है कि पहले से मौजूद किसी भी तरह की बीमारी की जानकारी देने से या तो पॉलिसी कवरेज नहीं मिलेगी या फिर ज्यादा प्रीमियम का भुगतान करना होगा। हालांकि, अधिकतर इंश्योरेंस प्रोवाइडर्स थोड़े समय के वेटिंग पीरियड के बाद इन बीमारियों को कवर करने लगते हैं। ऐसे में अगर इंश्योरेंस प्रोवाइडर से जानकारी छिपाने से आपको इस बात को लेकर थोड़ी राहत मिल जाती है कि आपके प्रीमियम में इजाफा नहीं होता है लेकिन बाद में जब ये पता चलता है कि आपने जान-बूझकर कोई बात छिपाई थी तो फिर ये चीज आपको ज्यादा महंगी पड़ जाती है। परिणामस्वरूप आपके परिजन के लिए वित्तीय जोखिम की स्थिति पैदा हो जाएगी, जिनके लिए आपने इंश्योरेंस कवर लिया था। इंश्योरेंस प्रोवाइडर को हेल्थ से जुड़ी जानकारी देते समय ज्यादा से ज्यादा विस्तृत जानकारी दी जाने की सलाह दी जाती है। इस तरह अंडरराइटिंग सिस्टम पूरी तरह से आपके पक्ष में काम करेगा क्योंकि इसके तहत सबसे उचित प्रीमियम का निर्धारण होगा, पॉलिसी आपको जल्दी इश्यू की जाएगी और साथ ही पॉलिसी या क्लेम के रिजेक्ट होने की आशंका कम हो जाएगी। दूसरी ओर लंबी अवधि में पॉलिसी के वैल्यू को बढ़ाने में मदद मिलेगी।