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छत्तीसगढ़ में 82 प्रतिशत का आरक्षण एक महत्वपूर्ण कदम- भूपेश

रायपुर 08सितम्बर।छत्तीसगढ़ के  मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 प्रतिशत, अनुसूचित जाति को 13 प्रतिशत, अनुसूचित जनजातियों को 32 प्रतिशत और आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने के निर्णय का उल्लेख करते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ में 82 प्रतिशत का आरक्षण सामाजिक न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगा।

श्री बघेल ने आज मासिक रेडियो कार्यक्रम ‘लोकवाणी’ की दूसरी कड़ी में प्रदेशवासियों को सम्बोधित करते हुए कहा कि प्रदेश में शिक्षकों की नियमित भर्ती की प्रक्रिया शुरू की गई है। कॉलेजों में भी डेढ़ हजार प्राध्यापकों की भर्ती होगी। युवाओं को सम्बोधित करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि युवाओं में उद्यमिता का विकास और प्रोत्साहन हमारी सबसे बड़ी प्राथमिकता है। युवाओं के साथ प्रदेश के सामाजिक, आर्थिक विकास के मोर्चे पर बड़े अभियान प्रारंभ किए जाएंगे। युवाओं की प्रतिभा लगन, मेहनत और जुनून से इसमें हमें अवश्य सफलता मिलेगी। प्रदेश में एक ऐसा सपोर्ट सिस्टम विकसित किया जाएगा। जिसकी सहायता से युवा अपना कौशल विकसित कर सकें।

मुख्यमंत्री श्री बघेल ने लोकवाणी की शुरूआत में बताया कि आज 8 सितम्बर को विश्व साक्षरता दिवस है। साक्षरता का अर्थ अक्षर-ज्ञान से है। जो लोग लिख-पढ़ लेते हैं वे साक्षर और जो नहीं पढ़-लिख पाते हैं वे निरक्षर कहलाते हैं। साक्षर लोग निरंतर पढ़ाई-लिखाई कर और निखार लाने में लगते रहते हैं, ताकि वे अपने जीवन में उजियारा ला सकें। आज के दिन सभी लोग यह संकल्प लेते हैं कि हमारे प्रदेश के सभी लोग साक्षर हो सके।

उन्होंने लोकवाणी के माध्यम से कड़वी पर सच्ची बात बताया कि छत्तीसगढ़ में 2011 के जनगणना के अनुसार 70.28 प्रतिशत लोग साक्षर थे।जिसमें 80.27 प्रतिशत पुरूष और 60.27 प्रतिशत महिला वर्ग से थे।साक्षरता का आंकलन प्रत्येक 10 साल में होता है अर्थात साक्षरता का नया आकड़ा 2021 की जनगणना के बाद आएगा, लेकिन एक अनुमान है कि 2011 से 2018 के बीच हुए प्रयासों के बावजूद आज भी राज्य में लगभग एक चौथाई आबादी साक्षर नहीं है।

श्री बघेल ने कहा कि ऐसी स्थिति में कोई कहे कि हमने राज्य को विकास के शिखर पर पहुंचा दिया है, तो उसे सफेद झूठ ही माना जायेगा।आज विश्व साक्षरता दिवस के अवसर पर यह कहना शायद अनुचित लगे लेकिन यह बेहद दुःख और चिंता का विषय है कि 31 मार्च 2018 से राष्ट्रीय स्तर पर ‘साक्षरता’ का कार्यक्रम ही बंद कर दिया गया है।इस कारण न केवल निरक्षरों को साक्षर बनाने की गति धीमी हुई है, बल्कि इस काम में लगे हजारों कर्मचारियों के रोजगार पर भी संकट आ गया है।