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मौन कार्यकर्ताओं के भावों को अभिव्यक्त करते “प्रभात’’- अरुण पटेल

अरूण पटेल

मूलत: पत्रकार और बाद में भाजपा से जुड़कर मीडिया प्रभारी से लेकर राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद तक पहुंचने वाले राज्यसभा सदस्य प्रभात झा ने दनादन एक साथ जो ट्वीट की झड़ी लगाई वह भोपाल से लेकर नई दिल्ली तक चर्चित हुई। जिसकी जैसी भावना रही उसने उसके अनुसार किए गये ट्वीट की व्याख्या की। बिना किसी का नाम लिए इशारों ही इशारों में उन्होंने जो कुछ कहा उसको सही संदर्भों में यदि भाजपा का मौजूदा केंद्रीय व प्रादेशिक नेतृत्व समझ कर अपनी कार्यप्रणाली में कुछ बदलाव करेगा तो इससे पार्टी को मजबूती मिलेगी और जो कार्यकर्ता अपने को उपेक्षित समझ रहे हैं वे अपनी पूरी ऊर्जा के साथ उठ खड़े होंगे। झा के ट्वीट से भाजपाई राजनीति में खलबली मचना स्वाभाविक है, भले ही ऊपरी तौर पर सब सामान्य दिखाने की कोशिश रही हो लेकिन आम कार्यकर्ता इससे खुश है। अनुशासनात्मक डंडे के डर से मौन रहने वाले भाजपाई इससे खुश हैं कि किसी ने तो उनके मन की पीड़ा को अपनी लेखनी से अभिव्यक्त करने का साहस दिखाया, इसी कारण उनके मन में झा के प्रति सम्मान और बढ़ गया है। भले ही कुछ लोग इसे झा का दर्द समझ रहे हों लेकिन लेखनी के माध्यम से जो उजागर हुआ है उसमें अनेकों के अनुभव की अभिव्यक्ति समाहित है।

लम्बे समय तक महामंत्री संगठन रहे रामलाल की राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में वापसी होने के बाद झा ने जो ट्वीट किए उनमें उन मनोभावों की अभिव्यक्ति है जिसे भाजपाई महसूस तो कर रहे थे लेकिन अंदर ही अंदर मन मसोसकर रह जाते थे। उनमें से अनेक यह सोच रहे हैं कि आजकल हालात वैसे ही हो गए हैं जैसा कि ट्वीट में कहा गया है। रामलाल की जो कार्यप्रणाली रही और उससे जो महसूस हुआ उस पर ही एक प्रकार से यह तंज था। यह कहना कि कुछ लोग इंसान होते हुए भी खुद को भगवान मानने लगते हैं उन सब संगठन मंत्रियों पर लागू होता है जिनसे मिलना भाजपाइयों के लिए दूभर हो जाता है। भाजपा में महामंत्री संगठन सबसे शक्तिशाली होता है क्योंकि वह संघ का प्रतिनिधि होता है। पहले संगठन महामंत्री संगठन के विस्तार तक ही अपने को सीमित रखते थे लेकिन जबसे भाजपा सत्ता में आई एवं जिन-जिन राज्यों में सत्ता में आई वहां के जिला, संभाग एवं प्रदेश स्तर के संगठन मंत्रियों और महामंत्रियों में भी सत्ता की चमक-दमक का मोह इस कदर बढ़़ गया कि वे भी सुख-सुविधाओं के आकांक्षी हो गए। भाजपा के संस्कारित लोगों के अलावा बड़ी संख्या में नये कार्यकर्ता भी पार्टी से जुड़ते गए। जो कार्यकर्ता आर्थिक संसाधनों से संपन्न थे उन्होंने ऐसे लोगों की तगड़ी घेराबंदी कर ली कि उन्हें ही दूसरों से ज्यादा तवज्जो मिलने लगी। संगठन मंत्रियों के इर्द-गिर्द कुछ लोगों का ऐसा घेरा बनकर रह गया कि वे उनमें ही घिर कर रह गए और इससे इतर कौन समर्पित है उसे उनकी पारखी नजर नहीं परख पाई। शायद जिन्होंने घेरेबंदी कर रखी थी उन्होंने उनकी आंखों पर पर्दा डाल रखा था ताकि वे इससे इतर देख ही न सकें। ऐसे में कई लोग उदासीन होते चले गये। रामलाल की कार्यप्रणाली पर जो तंज झा ने किया उसे यदि गंभीरता से पार्टी आलाकमान ले और निचले स्तर तक कुछ बदलाव आये तभी पार्टी में वे कार्यकर्ता उत्साहित व ऊर्जावान हो सकेंगे जो यह मान रहे हैं कि उनकी कोई सुनवाई नहीं होती। ऐसे ही हाल उन पदाधिकारियों में भी देखने में नजर आये जो प्रदेशों के प्रभारी बनाये गये, उन्होंने भी कुछ ऐसे लोगों तक ही अपने को सीमित कर लिया जो सुख-सुविधाएं जुटाते रहें। कुछ प्रदेश प्रभारियों ने तो राज्यों में अपने चहेतों को निगम-मंडलों में नियुक्ति तक दिलाई और उसके बाद प्रदेशों में जो चल रहा है उसे पूरी तरह सुशासन मानते हुए इसी प्रकार की छवि राष्ट्रीय नेताओं को भी दिखाते और महसूस कराते रहे। इसे मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ भाजपा के हाथ से निकल जाने की एक बड़ी वजह भी मानी जा सकती है।

झा के अनुसार अच्छा व्यक्ति व संगठक वह है जो हर व्यक्ति को काम में जुटा ले। जो खुद भी काम नहीं करते और किसी को भी नहीं करने देते वे सदैव असफल होते हैं, इसलिए हमेशा अपने काम पर विश्‍वास रखें। यह बात रामलाल की कार्यप्रणाली पर इसलिए सटीक बैठती है क्योंकि उनके कंधों पर ही यह जिम्मेदारी थी कि सभी को काम पर लगाये। विधानसभा चुनाव के समय यह देखा गया था कि भाजपा के कार्यकर्ता उदासीन थे और सरकार जाने पर गंभीर होने की जगह वे आंतरिक खुशी के हावभाव छुपा नहीं पा रहे थे। मध्यप्रदेश में लोकसभा चुनाव के जो नतीजे आये वे न तो स्थानीय संगठन के भरोसे आये, न कार्यकर्ताओं के पुरुषार्थ का नतीजा था और न ही उन स्टार प्रचारकों के भरोसे आये जो कि प्रचार कर रहे थे। वह जीत केवल नरेंद्र मोदी की थी और उनके नाम पर ही मतदाताओं ने स्वयं आगे बढ़चढ़ कर ईवीएम के बटन दबाये। इस संदर्भ में झा के ट्वीट महत्व रखते हैं क्योंकि संगठन में हर स्तर पर कुछ न कुछ बदलाव की जरुरत है। इसके विपरीत यदि इस जीत को प्रादेशिक संगठन व उसके कर्णधारों की जीत मानकर यथास्थिति रही तो वह पार्टी के लिए अधिक नुकसानदेह भी हो सकती है। झा ने यह भी लिखा कि यदि आपको अवसर मिल गया और उन्हें अवसर नहीं मिला। आपको अवसर मिला है तो सभी की योग्यता का लाभ लेना चाहिए, कम बोलना अच्छा है, कम बोलने से यह बात भी आती है कि इन्हें बोलना ही नहीं और बोलना आता भी नहीं है। ज्यादा नहीं बोलने पर यह तो सोचें कि नहीं बोलने के चक्कर में सच का गला तो नहीं घोंटा जा रहा है। आप जो आज हैं कल नहीं रहेंगे, आपका व्यवहार ही आपका जीवन भर साथ देगा। “आप“ और “हम“, “मैं“ और “तू“ में अन्तर है, एक में विनम्रता है तो दूसरे में अपनत्व। यह राग बिगड़ता है तो मानवीय संबंध बिगड़ जाते हैं। सामान्य तौर पर आप जब निर्णायक पद पर जायें तो राजा हरिश्‍चन्द्र के चरित्र को अवश्य अपने सामने रखें। शायद उनका इशारा अपने और पराये के प्रति भेद न रखने की ओर था और निर्णय लेते समय सबको समान समझने की ओर था।

ट्वीट में जो कुछ संदेश छिपे हैं और जिनकी गहराई में जाने की जरुरत है उसमें कुछ इस प्रकार हैं- संतुलन शब्द को जीवन में सदैव समझते रहना चाहिए, कार्य में संतुलन ही जीवन की सफलता है, अवसर को बांटो पर चाटो नहीं तथा जब व्यक्ति का नाम होता है तभी बदनाम होने की संभावना बढ़ जाती है, जिस डाल पर जरुरत से ज्यादा फल आ जाते हैं वह डाल टूट जाती है। कम से कम इस बात का तो खुलासा होना ही चाहिए कि उनका इशारा किस डाल के टूटने के खतरे की ओर है, क्योंकि मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ व राजस्थान में तो सरकार रुपी डाल छ: महीने पहले ही टूट चुकी है। इसे उन्होंने छुपाकर ही रखा है कि उनका इशारा राज्य के संगठन की ओर है या केंद्र के संगठन में जो कुछ चल रहा है उसकी ओर। कम से कम नीति निर्धारकों को तो झा के ट्वीट ने चेता ही दिया कि डाल नहीं टूटना चाहिए। सवाल यह है कि उसे तो जगाया जा सकता है जो सो रहा हो या उसको झपकी लग गयी हो, लेकिन उसे जगाना शायद आसानी से संभव न हो जागते हुए सोने का उपक्रम कर रहा हो।

और यह भी

पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के विधानसभा सत्र के दौरान भोपाल में सक्रिय रहने और लंच तथा डिनर की जो डिप्लोमेसी हुई उसका लोग अपने-अपने ढंग से अंदाज लगा रहे हैं कि आखिर सिंधिया के आकर सक्रिय होने का राज क्या था। चूंकि उन्होंने सभी विधायकों से मुलाकात की और डिनर में निर्दलीय व सहयोगी दलों के विधायक भी शामिल थे इसलिए यदि सांकेतिक भाषा में कहा जाए तो राजनीतिक मौसम का जो तूफानी बवंडर गोवा से उठकर कर्नाटक तक जा पहुंचा है उसकी चपेट में मध्यप्रदेश न आ पाये इसकी पेशबंदी करने में सहभागी बनना था। सिंधिया की सक्रियता को यदि पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नजरिए से देखा जाए जिसमें विपक्ष में आने के बाद उन्होंने कहा था कि टाइगर अभी जिन्दा है। इसी प्रकार सिंधिया ने भी सक्रिय रह कर कांग्रेस पार्टी और उसकी सरकार को यह आभास दिलाया है कि टाइगर अभी जिन्दा है। वैसे चुनावी हार-जीत से किसी भी बड़े नेता का कद छोटा नहीं होता है क्योंकि जो आज हारा है वह कल जीत भी जाता है।

 

सम्प्रति-लेखक श्री अरूण पटेल अमृत संदेश रायपुर के कार्यकारी सम्पादक एवं भोपाल के दैनिक सुबह सबेरे के प्रबन्ध सम्पादक है।