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बदलाव का एहसास कराता कमलनाथ सरकार का पहला बजट – अरुण पटेल

अरूण पटेल

मध्यप्रदेश में कांग्रेस 15 साल के बाद ‘वक्त है बदलाव का’ नारे के साथ सत्ता में आई थी। उम्र से तरुण और तरुणाई से भरपूर नाम से भी तरुण भानोत वित्त मंत्री ने कमलनाथ सरकार का जो पहला बजट राज्य विधानसभा में प्रस्तुत किया है वह निश्‍चित तौर पर बदलाव का एहसास कराने वाला है। डेढ़ दशक के अन्तराल के बाद जो बजट आया है उसे दिशा, नीयत और सभी वर्गों की आशाओं की पूर्ति का संकल्प करने वाला दस्तावेज माना जा सकता है। लगभग 13 वर्ष तक प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह चौहान की नजर में यह बजट जनता को ठगने और गरीब विरोधी एक बेदम बजट है। यह स्पष्ट हो गया है कि यह सरकार सिर्फ शिगूफे छोड़ती है। वहीं नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव की नजर में पहला बजट सरकार के खोखलेपन को उजागर करता है और यह केवल गप्पबाजी और शायरियों के अलावा इसमें कुछ नहीं है। केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की नजर में यह बजट विकासशून्य एवं दिग्भ्रमित करने वाला है। इसके विपरीत मुख्यमंत्री कमलनाथ का दावा है कि खाली खजाने के बावजूद यह प्रदेश की खुशहाली का बजट है। किसान, युवा, गरीब वर्ग, अनुसूचित जाति जनजाति वर्ग के हित में बजट में जो चिन्ता की गयी है इससे आने वाले पांच सालों में प्रदेश के वास्तविक विकास का नक्शा साकार होगा। प्रदेश कांग्रेस मीडिया विभाग की अध्यक्ष शोभा ओझा इस बजट को सभी वर्गों की आकांक्षाओं को पूरा करने वाला और कांग्रेस अध्यक्ष के मीडिया समन्वयक नरेंद्र सलूजा इसे जनहितैषी और आमजन को समर्पित बजट निरुपित कर रहे हैं।

जहां एक ओर वित्तीय वर्ष 2019-20 का बजट अपने आपमें बदलाव की झलक तो समेटे हुए वहां समाज के हर वर्ग की सुविधाओं में वृद्धि का संदेश भी इसमें सन्निहित है। बजट में कांग्रेस में आये उस बदलाव की भी साफ झलक नजर आती है जिसमें वह बहुसंख्यकों का दिल जीतने के लिए उदार हिंदुत्व के एजेंडे पर भी उसी प्रतिबद्धता के साथ आगे बढ़ना चाहती है जैसी कि उसने अपने कोर दृष्टिकोण के तहत किसानों, युवाओं, महिलाओं व आदिवासियों के लिए दिखाई है। ‘वक्त है बदलाव का’ नारे के साथ ही कांग्रेस ने अपने विधानसभा चुनाव के एजेंडे में गांव-गरीब, किसान और आदिवासियों पर जो फोकस बनाया हुआ था उसके अनुरुप बजट में प्रावधान भी किए गए हैं। बजट में प्रावधान होना एक बात है और उनका ठोस धरा पर उतरना दूसरी बात है। यह तो वित्तीय वर्ष के अन्त में ही पता चलेगा कि बदलाव की जो बयार श्यामला हिल और अरेरा पहाड़ी से निकली है वह उन व्यक्तियों व वर्गों तक उसी रुप में पहुंची है या नहीं और उन्हें अपने जीवन में नयेपन का एहसास होता है नहीं। जहां तक उदार हिंदुत्व ‘सॉफ्ट हिंदुत्व’ की झलक इस बात से मिलती है कि कांग्रेस सरकार ने एक हजार गौशालाएं बनाने के लिए 132 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है। गौशाला के तीन मॉडल्स बनाये गये हैं। पुरानी गौशालाओं के लिए भी चारे एवं भूसे के लिए प्रतिदिन प्रति गाय 20 गुना वृद्धि की गयी है। पहले प्रति गाय एक रुपया मिलता था। अब 20 रूपए मिलेगा। रामपथ गमन क्षेत्र के विकास के लिए भी बजट में प्रावधान किया है। यह वैसे शिवराज सरकार की महत्वाकांक्षी योजना थी लेकिन तत्कालीन जनसंपर्क, संस्कृति एवं धर्मस्व मंत्री लक्ष्मीनारायण शर्मा के चुनाव हारने के बाद एक प्रकार से ठंडे बस्ते में चली गयी थी। शर्मा ने स्वयं रुचि लेकर रामपथ गमन को चिंहित कराया और विकास का मॉडल तैयार किया था। लेकिन बाद में उसकी किसी ने उतनी सुध नहीं ली जितनी व्यक्तिगत रुचि इसमें शर्मा ले रहे थे। कांग्रेसी जिस बात को सार्वजनिक रुप से कहने से बचते रहते थे उसे दरकिनार करते हुए उदार हिंदुत्व की ओर बढ़ने के सवाल पर वित्त मंत्री भानोत ने डंके के चोट पर कहा कि यह हमारी परम्परा है, मैं स्वयं हिन्दू और ब्राहम्ण भी। अपनी परम्पराओं को आगे बढ़ाना हमारी जिम्मेदारी है यह काम हम नहीं करेंगे तो क्या पाकिस्तान करेगा। लगता है भानोत यह कहते हुए केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह के उस जुमले को जिसे वे अपना कॉपीराइट समझते हैं और बात-बात में लोगों को पाकिस्तान भेज देने की बात करते हैं, वह उनसे छीन रहे हैं।

बजट भाषण आंकड़ों और कठिन वित्तीय शब्दावली के कारण अक्सर बोझिल होता है उस बोझिलता को कम करने के लिए भानोत ने भी शेरो-शायरी का सहारा लिया। आगाज ही उन्होंने महान अर्थशास्त्री और राजनीतिवेत्ता कौटिल्य का स्मरण करते हुए कहा कि कौटिल्य का सूत्र वाक्य ही हमारी सरकार का मूल मंत्र है। ‘प्रजासुखे सुखं राज्ञ: प्रजानां तु हिते हितम्। नात्मप्रिय हितं राज्ञ: प्रजानां तु प्रियं हितम्।’ अर्थात प्रजा के सुख में राजा का सुख निहित है, प्रजा के हित में उसे अपना हित दिखना चाहिए। जो स्वयं को प्रिय लगे उसमें राजा का हित नहीं है, उसका हित तो प्रजा को प्रिय लगे उसमें है। भाजपा सरकार द्वारा राज्य का खजाना खाली करने संबंधी कांग्रेस सरकार जो बढ़चढ़ कर दावा करती रही है उसकी चर्चा करते हुए भानोत ने कहा कि हमने राजस्व आय के नये स्त्रोतों को चिन्हांकित कर आवश्यक संसाधनों की व्यवस्था करने का प्रयास किया है। कम से कम उन्होंने बजट में कोई नया कर न लगाकर जनता को राहत दी, लेकिन केंद्रीय बजट के साथ ही पेट्रोल व डीजल पर दो-दो रुपये उपकर लगाकर राज्य के खजाने को मोदी सरकार की तर्ज पर लबालब भरने का इस तरीके से उपक्रम किया कि दोनों ही बड़े दलों के सामने इस महंगाई की मार को लेकर मौन साधने के अलावा कोई चारा नहीं रहा। न कोई सायकल पर आया और न बैलगाड़ी और बग्गी नजर आयी और जनता की जेब कुछ इस ढंग से काट ली गयी जिस पर आक्रोश व्यक्त करने वाला कोई नजर नहीं आया। न तो कांग्रेस ने केंद्र की वृद्धि का विरोध किया और न ही भाजपाइयों ने कमलनाथ सरकार के इस कदम की आलोचना की। प्रदेश की आर्थिक स्थिति का भानोत ने कुछ यूं चित्रण किया ‘विषम परिस्थितियां, जैसे हो गहन अंधेरा। हिम्मत और यत्न, जैसे हो उजला सबेरा।’ अपना रग-रग प्रदेश की जनता की खुशहाली के लिए समर्पित करते हुए भानोत कहते हैं कि मॉ नर्मदा के सानिध्य का भरपूर सौभाग्य मिला है। उनकी गति व प्रवाह बड़े से बड़े अवरोधों को चीरकर प्रवृत्ति एवं असल गहराइयों से प्रेरणा मिलती है। ‘अपनी लम्बाई का गुरुर है रास्तों को, लेकिन वह मेरे कदमों के मिजाज नहीं जानता।’ कठिनतम परिस्थितियों में हमारी सरकार ने अल्पकाल में जनहित की योजनाओं को पूरा करने की प्रतिबद्धता दिखाई है, आगाज अच्छा है, नीयत अच्छी है, सोच अच्छी है। वे कहते हैं कि ‘तेरे पास जो है उसी की कद्र कर यहां आसमॉ के पास भी खुद की जमीं नहीं।’

और यह भी

भानोत ने शेरो-शायरी और कविता की जो भरमार की वह इस प्रकार है- ‘समाज के सर्वहारा वर्ग को है हमारा साथ, जनसेवा के लिए सदैव खुले हमारे हाथ।’ वंचित वर्ग के जीवन स्तर के बारे में वे कहते हैं ‘परिन्दे रुक मत, इसमें जान अभी बाकी है, मंजिलें बहुत दूर हैं, उड़ान अभी बाकी है, जिन्दगी वो जंग है जिसमें हौंसला जरुरी है, जीतने के लिए अभी सारा जहान बाकी है।’ अध्यात्म विभाग की चर्चा कुछ इस प्रकार की गयी ‘थोड़ा सुकूं भी दीजिए जनाब, ये जरुरतें तो कभी खत्म नहीं होतीं।’ आर्थिक संसाधनों की कमी से जूझने की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा ‘आसान होता है एवरेस्ट पर चढ़ना, उससे भी आसान होता है चांद को चूम कर धरती पर लौट आना, परन्तु कठिन होता है दुख के पहाड़ को, दशरथ मांझी की तरह हौसलों से काटना।’ दलीय भावनाओं से उपर उठकर एक साथ प्रयास करने की कामना भोनात इन शब्दों में करते हैं ‘दुआ कौन सी थी हमें याद नहीं, दो हथेलियां जुड़ी थीं, एक तेरी थी एक मेरी थी।’ सुनने और अपेक्षा करने में तो यह अच्छा लगता है लेकिन देखने की बात यही होगी कि राजनीति की पथरीली राहें और अपने-अपने दल की लकीर लम्बी करने की भावना के चलते यह अपेक्षा कितनी सार्थक होती है।

 

सम्प्रति-लेखक श्री अरूण पटेल अमृत संदेश रायपुर के कार्यकारी सम्पादक एवं भोपाल के दैनिक सुबह सबेरे के प्रबन्ध सम्पादक है।