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विधानसभा में पग-पग पर अग्नि परीक्षा से गुजरेगी कमलनाथ सरकार- अरुण पटेल

अरूण पटेल

कल 08 जुलाई से 26 जुलाई के दरम्यान होने वाला विधानसभा का पावस सत्र जो कि वास्तव में बजट सत्र ही है, के दौरान जिस ढंग का जनादेश चुनाव में मिला है उसको देखते हुए पग-पग पर राज्य की कमलनाथ सरकार को अग्नि परीक्षा से गुजरना होगा। वैसे तो कांग्रेस का अपना बहुमत हो गया है लेकिन फिर भी सरकार चार निर्दलियों और दो बसपा-एक सपा विधायकों की बैसाखी पर चल रही है। चूंकि यह बजट सत्र है इसलिए कभी भी मुख्य विपक्षी दल भाजपा, चुनौती देते हुए विभिन्न विभागों की मांगों और बजट को लेकर जब चाहे मत विभाजन की मांग कर सकता है। जिस प्रकार के तेवर समय-समय पर कुछ निर्दलीय और बसपा की एक विधायक दिखाती रही हैं उसे देखते हुए बजट सत्र की अग्नि परीक्षा पार करने के बाद ही कमलनाथ सरकार कुछ समय के लिए प्रदेश में उस अस्थिरता के वातावरण को छांटने में सफल होगी जो पिछले छ: माह से भाजपा के बड़े नेता पैदा करने का कोई अवसर नहीं छोड़ रहे। इस सत्र में भाजपा कमलनाथ सरकार को चक्रव्यूह में घेरने की हरसंभव कोशिश करेगी और उसको भेदकर सरकार उस सूरत में ही बाहर निकल पायेगी कि उसका फ्लोर मैनेजमेंट सजग-सतर्क और जागरुकता से भरा रहे। वह हमेशा बैठकों के दौरान लॉबी या सदन में अपने उन सभी विधायकों को मौजूद रख सके जिनके भरोसे सरकार चल रही है।

सोमवार से प्रारंभ हो रहा विधानसभा सत्र काफी हंगामादार होने की संभावना है क्योंकि एक तरफ विभिन्न मुद्दों को लेकर भाजपा विधायक आक्रामक रुख अपनायेंगे तो वहीं दूसरी ओर कांग्रेस विधायक भी इस तैयारी में लग गये हैं कि भाजपा सरकार के 15 साल के घपलों-घोटालों व कारनामों को उजागर करते हुए आरोपों के जवाब में प्रत्यारोपों की मूसलाधार झड़ी लगा दें। एक तरफ सदन के अंदर आरोपों-प्रत्यारोपों की झड़ी लगी रहेगी तो दूसरी ओर प्रदेशवासियों की यह अभिलाषा रहेगी कि प्रदेश में बरसात की निरन्तरता बनी रहे ताकि पेयजल संकट दूर होने के साथ ही अच्छी फसल की आशा में किसानों के चेहरों पर भी मुस्कराहट आ सके। भाजपा सदन के अंदर सरकार को घेरने में कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखेगी और विभिन्न मुद्दों को लेकर बजट सत्र को हंगामाखेज बनाने की हरसंभव कोशिश करेगी। किसानों की कर्जमाफी, कथित तबादला उद्योग, बिजली के गहराते संकट को लेकर भाजपा सरकार पर हमलावर होगी। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव और पूर्व मंत्री नरोत्तम मिश्रा सहित भाजपा के पास अनेक ऐसे मुखर और ओजस्वी विधायक हैं जो सरकार की तगड़ी घेराबंदी कर सकते हैं। ऐसे हालातों में सदन में फ्लोर मैनेजमेंट करने में अपनी महारत का वरिष्ठ मंत्री डॉ. गोविंद सिंह को परिचय देना होगा। उन्हें इस बात के लिए भी सतर्क रहना होगा कि विपक्ष के सदस्यों की तुलना में सत्तापक्ष के विधायकों की संख्या सदन में अधिक रहे ताकि मत विभाजन की चुनौती का सरकार सफलता से सामना कर सके। हाल ही तक भाजपा के नेता शिवराज सिंह चौहान, नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव और राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय तथा नरोत्तम मिश्रा आदि बार-बार सरकार गिराने की जो बात कह रहे थे उसके स्थान पर अब वह यह कहने लगे हैं कि हम सरकार नहीं गिरायेंगे लेकिन यह सरकार अपने अन्तर्विरोधों के बोझ से कभी भी गिर सकती है। वैसे राजनीति में यह माना जाता है कि हमेशा जो कहा जाता है वह नहीं बल्कि उससे अलग होता है। गणित के फार्मूले की तरह हमेशा दो जमा दो चार नहीं होता बल्कि कभी पांच और कभी तीन हो जाता है।

जिन अन्य मुद्दों को लेकर भाजपा सरकार की घेराबंदी करने की कोशिश करेगी उनमें किसानोें की समस्याओं को जोरशोर से उठाकर राजनीतिक लाभ लेने का प्रयास भी शामिल है। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि की राशि का वितरण प्रदेश के किसानों को न हो पाने का ठीकरा भी विपक्ष कमलनाथ सरकार के सिर फोड़ेगा। उल्लेखनीय है कि लोकसभा चुनाव प्रचार अभियान के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी यह मुद्दा चुनाव सभाओं में जोरशोर से उठाते हुए कहा था कि कमलनाथ सरकार से जानकारी नहीं मिलने के कारण यहां के किसानों को यह राशि नहीं मिल पा रही है। महिला सुरक्षा और नाबालिग बच्चियों के साथ प्रदेश में हाल ही हुई बलात्कार की घटनाओं, हत्या एवं अपहरण तथा बिगड़ती हुई कानून व्यवस्था को लेकर भी भाजपा कमलनाथ सरकार की जमकर घेराबंदी करेगी। भाजपा के अनुसार पटरी से उतरी शिक्षा व स्वास्थ्य व्यवस्था पर भी जमकर सरकार से सवाल पूछे जायेंगे। कुपोषण, बेरोजगारी, सड़कों की मरम्मत न होने और रुके हुए निर्माण कार्यों के अलावा विभिन्न योजनाओं के लिए धनराशि की अनुपलब्धता को लेकर भी सदन में सरकार को जवाबदार ठहराने की विपक्ष पूरी कोशिश करेगा। सभी भाजपा विधायकों को कह दिया गया है कि किसी भी मसले पर पीछे हटने की जरुरत नहीं है, तीखे सवालों और तथ्यों के साथ हमेशा सरकार पर हमलावर रहना है। नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव का कहना है कि प्रदेश में प्रशासनिक व्यवस्था चरमराई हुई है, सरकार नाम की कोई चीज नहीं रह गयी, जनता की समस्याओं पर ध्यान नहीं है, सरकार के मंत्री तबादलों के धंधे में व्यस्त हैं, इन सभी मुद्दों पर सरकार से जवाब मांगे जायेंगे। कांग्रेस विधायक भी पूरी तरह मुस्तैद हैं और उन्होंने विपक्ष के विधायकों से ज्यादा सवाल पूछे हैं, खासकर उन मुद्दों पर उनका ज्यादा फोकस रहेगा जिनको लेकर शिवराज सरकार के कार्यकाल में हुई अनियमितताओं को आधार बनाकर भाजपा के हमले की धार को बोथरा किया जाये। इस सत्र के लिए लगभग 4 हजार 400 से अधिक सवाल लगाये गये हैं। 1633 सवाल ऑनलाइन आये हैं और साथ में 22 अशासकीय संकल्प लाने की सूचना दी गयी है। विधानसभा का यह अब तक का सबसे छोटा सत्र होगा, जिसमें केवल 15 बैठकें होंगी। दिग्विजय सिंह के मुख्यमंत्रित्वकाल में बजट सत्र 40 से 45 दिनों का होता था जबकि शिवराज सरकार के कार्यकाल में धीरे-धीरे सत्र की अवधि और बैठकें कम होती गयीं।

और यह भी

देश की पहली महिला वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन द्वारा लोकसभा में पेश केंद्रीय बजट में मध्यप्रदेश को केंद्रीय करों के रुप में 5000 करोड़ रुपये से अधिक मिलने की संभावना है। वैसे मध्यप्रदेश सरकार इसे भी कम मान रही है, यही कारण है कि उसने केंद्रीय वित्त आयोग के सदस्यों से मांग की है कि प्रदेश की हिस्सेदारी 42 प्रतिशत से बढ़ाकर 50 प्रतिशत की जाए, लेकिन यह अभी केवल मांग है। केन्द्र सरकार द्वारा लोकसभा चुनाव के पूर्व पेश किए गए लेखानुदान से मध्यप्रदेश को जो राशि मिलने वाली थी उसमें 2677 करोड़ रुपये की कमी हुई है। इसकी भरपाई करने केंद्र सरकार ने किसी नई योजना में अलग से बजट देने का भी ऐलान नहीं किया है, ग्रामीण क्षेत्रों के लिए पेयजल हेतु भी कोई मेगा प्लान नहीं बनाया गया है। सोशल सेक्टर के लिए भी अलग से प्रावधान नही है, इसके बाद मध्यप्रदेश सरकार की परेशानी बढ़ने की संभावना है। जिस प्रकार केंद्र सरकार ने पेट्रोल-डीजल पर एक-एक रुपये की एक्साइज ड्यूटी और सेस लगाकर अपना खजाना लबालब करने की कोशिश की है उसी नक्शेकदम पर आगे बढ़ते हुए प्रदेश की कमलनाथ सरकार ने भी पेट्रोल और डीजल पर दो-दो रुपये की अतिरित ड्यूटी लगा दी है। इस प्रकार मध्यप्रदेश में अब पेट्रोल 4 रुपये 48 पैसे और डीजल 4 रुपये 40 पैसे महंगा हो गया है। भोपाल में अब पेट्रोल 78 रुपये 09 पैसे और डीजल 70 रुपये 03 पैसे प्रति लीटर के भाव पर मिलेगा। इससे एक दिन पूर्व शुक्रवार तक भोपाल में पेट्रोल 73 रुपये 61 पैसे और डीजल 65 रुपये 63 पैसे प्रति लीटर था। इस प्रकार मध्यप्रदेश में जनता के ऊपर महंगाई की डबल मार पड़ी है। उपभोक्ता इस मार से कराहता रहेगा और कांग्रेस एवं भाजपा कोई भी इस बढ़ोत्तरी का विरोध नहीं कर पायेगा, क्योंकि भाजपा यदि विरोध करती है तो कांग्रेस उलाहना देते हुए कह सकती है कि आप केंद्र से कम करा दो हम भी कम कर देंगे। जनता की किस्मत में हमेशा की तरह हर बजट के बाद महंगाई झेलना एक नियति बन गया है और इस बार तो कुछ ऐसा संयोग हुआ कि दोहरी मार भी पड़ गई और जनता की कराह सुनकर भाजपा और कांग्रेस शायद ही अब सड़क पर उतर कर विरोध करे और यदि करेगा तो उसे भी जनता के सवालों का जवाब देना पड़ेगा।

 

सम्प्रति-लेखक श्री अरूण पटेल अमृत संदेश रायपुर के कार्यकारी सम्पादक एवं भोपाल के दैनिक सुबह सबेरे के प्रबन्ध सम्पादक है।