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क्या छत्तीसगढ़ का फॉर्मूला मध्यप्रदेश में भी लागू करेंगे राहुल?- अरुण पटेल

अरूण पटेल

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के साफ संकेत देने के बाद देश भर से कांग्रेस के छोटे-बड़े डेढ़ सौ से अधिक नेताओं ने इस्तीफों की झड़ी उनके अंगने में लगा दी है। छत्तीसगढ़ में पहले से चल रहे दो नामों अमरजीत सिंह भगत और मनोज मंडावी की जगह मोहन मरकाम को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की कमान सौंपने के बाद यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या मध्यप्रदेश में भी जो नाम प्रमुखता से चल रहे हैं उनके स्थान पर कोई नया चेहरा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनेगा या जो दौड़ में हैं उनमें से ही किसी की लॉटरी खुलेगी। राहुल गांधी ने मनोज मंडावी और मोहन मरकाम का इंटरव्यू लेने के बाद मरकाम के नाम पर मोहर लगाई। इस समय मध्यप्रदेश की राजनीति एक अलग प्रकार की बेताबी, बेचैनी और दिशाहीनता के दौर से गुजर रही है क्योंकि सत्ताधारी दल कांग्रेस और मुख्य विपक्षी दल भाजपा दोनों को ही एक-एक अदद ऐसे चेहरे की तलाश है जो पार्टियों की कमान संभाल सके।कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल की पसन्द को तरजीह दी है तो देखने वाली बात यही होगी कि मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री कमलनाथ की पसंद से उनका उत्तराधिकारी बनाया जाता है या नहीं।

राहुल गांधी ने इंटरव्यू लेने के बाद छत्तीसगढ़ के प्रदेश अध्यक्ष के नाम पर मोहर लगाई है और ऐसा कांग्रेस में पहली बार नहीं हुआ है, इससे पूर्व अविभाजित मध्यप्रदेश में भी अर्जुन सिंह के प्रथम मुख्यमंत्रित्वकाल में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का फैसला इसी ढंग से हुआ था। उस समय राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल और मोतीलाल वोरा में से किसी एक को प्रदेश अध्यक्ष बनाने के लिए इंटरव्यू लिए गए थे। पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष इंदिरा गांधी और बाद में महासचिव राजीव गांधी ने दोनों नेताओं से चर्चा की और अन्त में प्रदेश कांग्रेस की बागडोर वोरा को सौंपी गयी। अध्यक्ष पद की दौड़ में शामिल अमरजीत भगत को भूपेश बघेल मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया गया है। मोहन मरकाम युवा, उत्साही और दो बार के जीते कांग्रेस विधायक हैं जिन्होंने 2013 के विधानसभा चुनाव में मंत्री लता उसेंडी को पराजित किया था। बस्तर का छत्तीसगढ़ की राजनीति में विशेष स्थान है और सत्ता की राह सामान्यतया यहीं से होकर गुजरती है। कांग्रेस के जो दो लोकसभा सदस्य चुने गए हैं उनमें से एक बस्तर से चुनाव जीता है जिसमें मरकाम की एक बड़ी भूमिका रही। उनके पदग्रहण समारोह में प्रदेश प्रभारी पीएन पूनिया ने यह कहकर मंत्रियों की धड़कने बढ़ा दी हैं कि जो मंत्री बन गए हैं वे यह मानकर न चलें कि पूरे पांच साल मंत्री बने रहेंगे, उनके कामों की समीक्षा होती रहेगी। इसका मतलब यह है कि कुछ अंतराल के बाद कुछ चेहरों को बाहर कर नये चेहरों को भी मौका दिया जायेगा। मंत्रियों की संख्या सुनिश्‍चित होने के कारण और भारी-भरकम बहुमत मिलने के कारण कई दिग्गज चेहरे मंत्री बनने से वंचित रह गए हैं, उन्हें भी आगे पीछे मौका मिलेगा। इनके मन में आशा की एक किरण पूनिया ने जगा दी है।

कमलनाथ के उत्तराधिकारी की तलाश पार्टी हाईकमान कर रहा है और जल्द ही किसी नये चेहरे को प्रदेश में कांग्रेस की कमान सौंपी जाने वाली है। कमलनाथ से राहुल गांधी की मुलाकात के बाद कभी भी प्रदेश अध्यक्ष की घोषणा हो सकती है। जहां तक नये प्रदेश अध्यक्ष का सवाल है दावेदारों में सबसे ऊपर पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस महासचिव ज्योतिरादित्य सिंधिया का नाम है। उनके समर्थक लम्बे समय से पूरी मुखरता के साथ सिंधिया को प्रदेश अध्यक्ष बनाने के लिए मांग कर रहे हैं, उनका तर्क है कि सिंधिया का ही एकमात्र ऐसा चेहरा है जो प्रदेश में कांग्रेस को मजबूती प्रदान कर सकता है। जहां कि सिंधिया का सवाल है उनको दायित्व सौंपने का फैसला किसी लॉबिंग के सहारे नहीं अपितु इस बात पर निर्भर होगा कि राहुल उनकी भविष्य में क्या भूमिका देखते हैं। राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष के रुप में भी सिंधिया की चर्चा चल रही है और उनके समर्थक उससे छोटी प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठाना चाहते हैं। यदि प्रदेश में किसी आदिवासी चेहरे को मौका दिया जाता है तो कमलनाथ मंत्रिमंडल के दो सदस्य बाला बच्चन और ओंकार सिंह मरकाम के साथ ही गजेंद्र सिंह राजूखेड़ी का नाम भी चर्चा में है। इसके अलावा अजय सिंह, अरुण यादव, सुरेश पचौरी और रामनिवास रावत भी इस पद के दावेदार हैं। ऐसा माना जा रहा है कि इन चारों नेताओं में से कोई अध्यक्ष यदि नहीं बन पाता तो फिर इन्हें निगम, मंडलों में पद देकर एडजस्ट किया जा सकता है। यदि प्रदेश की कमान किसी दलित चेहरे को सौंपने की नौबत आती है तो फिर मंत्री सज्जन सिंह वर्मा का दावा सबसे मजबूत रहेगा क्योंकि वे कमलनाथ खेमे के हैं। यदि हाईकमान इन सबसे इतर कोई चौंकाने वाला चेहरा सामने ला सकता है तो फिर पूर्व विधायक एवं पूर्व मंत्री सुरेंद्र चौधरी या ऐसा ही कोई नया नाम भी हो सकता है। जीतू पटवारी युवा, उत्साही और वैसे ही संघर्षशील युवा चेहरे हैं जैसा कि छत्तीसगढ़ में मोहन मरकाम का रहा है।

भाजपा को भी तलाश है एक अदद अध्यक्ष की

भारतीय जनता पार्टी में संगठनात्मक चुनाव की प्रक्रिया शुरु हो गयी है और इसके साथ ही अंदरुनी जमावट में भी कुछ नेता लग गए हैं। अध्यक्ष पद के दावेदारों ने भी जोर आजमाइश आरंभ कर दी है। भाजपाई गलियारों में इस बात की चर्चा हो रही है कि मौजूदा अध्यक्ष सांसद राकेश सिंह ही अगले प्रदेश अध्यक्ष होंगे या कोई नया चेहरा सामने आयेगा। वैसे परम्परा को देखा जाए तो उन्हें भी नंदकुमार सिंह चौहान की तरह एक कार्यकाल और मिल सकता है क्योंकि चौहान को पहली बार नरेंद्र सिंह तोमर के केंद्रीय मंत्री बनने के बाद शेष कार्यकाल के लिए अध्यक्ष बनाया गया था और राकेश सिंह चौहान के शेष बचे कार्यकाल के लिए अध्यक्ष बनाये गये है। राकेश सिंह की राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से नजदीकियों के चलते तथा मोदी कैबिनेट में जगह न मिलने के बाद यह समझा जा रहा है कि उन्हें संगठन में ही रखा जायेगा। हालांकि पिछले विधानसभा चुनाव के पूर्व उन्हें इस उम्मीद से प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपी गयी थी कि वे प्रदेश में भाजपा की सरकार बनाये रखने में एक सहयोगी चेहरे के रुप में मुफीद रहेंगे, लेकिन विधानसभा चुनाव में भाजपा के हाथ से सत्ता चली गयी और महाकोशल में भी भाजपा को पराजय का सामना करना पड़ा। हालांकि लोकसभा चुनाव में प्रदेश में भाजपा का अभी तक का सबसे श्रेष्ठ प्रदर्शन रहा लेकिन उसका श्रेय किसी भी प्रादेशिक नेता को नहीं दिया जा सकता क्योंकि वह चुनाव पूरी तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इर्द-गिर्द सिमट कर रह गया था जिसमें उम्मीदवारों के चेहरों का कोई महत्व था ही नहीं। अन्य दावेदारों में जो प्रमुख चेहरे हैं उनमें कैलाश विजयवर्गीय, प्रभात झा, नरोत्तम मिश्रा, भूपेन्द्र सिंह और वीडी शर्मा शामिल हैं,जिनमें सबकी अपनी-अपनी खूबियां हैं।कैलाश विजयवर्गीय हाईकमान के करीबी हैं लेकिन बंगाल में विधानसभा चुनाव में ममता के किले को ध्वस्त करने की अहम भूमिका अमित शाह ने उन्हें दे रखी है। नरोत्तम मिश्रा अमित शाह के काफी नजदीक हैं और सक्रिय तथा परिणामोन्मुखी ऐसे नेता हैं जो सौंपे गए हर काम को सफलता तक पहुंचाकर ही दम लेते हैं। प्रभात झा एक बार प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं और संगठन में काम करने का उन्हें बेहतर अनुभव भी है। प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए उन्होंने सर्वाधिक दौरे करने का रिकार्ड बनाया था। झा संघ नेताओं के भी काफी करीबी हैं। वीडी शर्मा संघ की पृष्ठभूमि के हैं और हाल ही हुए लोकसभा चुनाव में जीते हैं। वे भी संघ के पसंदीदा चेहरे हैं जिन्हें लोकसभा चुनाव का टिकट संघ से नजदीकियों के चलते ही मिला था। पूर्व मंत्री व पूर्व सांसद भूपेंद्र सिंह भी इस पद के दावेदार हैं और उनकी सबसे बड़ी ताकत यही है कि पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवराज सिंह चौहान के अति नजदीकी व भरोसेमंद हैं।

और यह भी

मध्यप्रदेश विधानसभा में जिस प्रकार का समीकरण बना है और निर्दलियों तथा सपा-बसपा की बैसाखियों पर कमलनाथ सरकार टिकी हुई है उसकी मजबूती के लिए कोई चेहरा हो सकता है तो वह पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह हैं जिनकी पूरे प्रदेश में पकड़ है और वे कांग्रेसजनों को एकजुट कर उसमें जान फूंक सकते हैं। बिना प्रदेश अध्यक्ष बने दिग्विजय सिंह स्वयं इस दायित्व को लेने के लिए तैयार हैं। वे राष्ट्रीय महासचिव रह चुके हैं और उनकी प्रदेश अध्यक्ष बनने में कतई रुचि नहीं हैं लेकिन प्रदेश में कांग्रेस को ऊर्जावान बनाकर उसे मजबूत करने में उनकी दिलचस्पी है। यह बात भी एक रेखागणित के स्वयंसिद्ध फार्मूले की तरह है कि बैकसीट ड्रायविंग पार्टी के लिए फायदेमंद साबित नहीं होगी।

 

सम्प्रति-लेखक श्री अरूण पटेल अमृत संदेश रायपुर के कार्यकारी सम्पादक एवं भोपाल के दैनिक सुबह सबेरे के प्रबन्ध सम्पादक है।