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मोदी के निजी जीवन की पेशकश में उभरे कई विरोधाभास- उमेश त्रिवेदी

उमेश त्रिवेदी

रेडियो पर खुद से मन की बात करने वाले, सिर्फ अपने पसंदीदा चैनलों एवं पत्रकारों से मोनोलॉग करने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने न्यूज-वर्ल्ड में इंटरव्यू की परम्पराओं में नए मानदंड स्थापित करते हुए बुधवार को बंबइया फिल्मों के सुपर-स्टार अक्षय कुमार को निजी जिंदगी से जुड़े प्रायोजित सवालों पर कोई एक घंटे लंबा इंटरव्यू दिया। जहन में यह ’अनर्गल’ सवाल भी उठ सकता है कि इंटरव्यू गुजरात के ब्राण्ड-एम्बेसेडर पद्म विभूषण अमिताभ बच्चन ने क्यों नहीं लिया? अथवा उनके निजी मित्र, जिससे उनके ’तू-तड़ाक’ वाले रिश्ते हैं, अमेरिका के बराक ओबामा ने क्यों नहीं लिया? एक स्वाभाविक प्रश्‍न जहन को कुरेदता है कि मोदीजी ने किसी मीडियाकर्मी के बजाय यह इंटरव्यू एक फिल्म-स्टार को देना क्यों पसंद किया? अक्षय कुमार की कौन सी विशेषताओं से प्रभावित होकर मोदी ने उन्हें यह मौका दिया?

बहरहाल, हाइपर-सवालों के जवाब नहीं होते, इसलिए सवालों को हाशिए पर छोड़ते हुए मूल मुद्दे पर आते हैं। प्रोपेगेण्डा यह था कि उनकी निजी जिंदगी से जुड़ा यह इंटरव्यू गैर-राजनैतिक है। सतह पर नजर भी यही आता है, लेकिन लोकसभा चुनाव के मध्यकाल में इंटरव्यू की टाइमिंग घोर-राजनीतिक थी। बातचीत को यूं संजोया गया था कि उनकी जिंदगी की हर घटना चुनावी-राजनीति का आचमन करते हुए लोगों के जहन में दर्ज हो सके। हाल ही चुनाव आयोग ने मोदी की बॉयोपिक पर रोक लगा रखी है। उनकी जिंदगी से जुड़े टीवी सीरियल को भी रोक दिया गया है। इस बैक-ड्रॉप में यह इंटरव्यू आचार-संहिता की खिल्ली उड़ाता हुआ बड़ी खूबसूरती से मोदी की जिंदगी का बहुआयामी राजनीतिक रेखा-चित्र लोगों के जहन में अंकित करता हुआ आगे बढ़ता है।

इंटरव्यू की खासियत यह थी कि अक्षय कुमार का हर सवाल मोदी को गुदगुदाता था। महसूस होता था कि मोदी के सवाल ही अक्षय कुमार की वाणी से प्रस्फुटित हो रहे हैं, यानि मोदी ही खुद से सवाल पूछ रहे हैं और उफन कर जवाब भी दे रहे हैं। इंटरव्यू का कुल जमा उद्देश्य यह दिखाना था कि ’मोदीजी, ये करते हैं, मोदीजी वो करते हैं’…’मोदीजी ऐसे रहते हैं, मोदीजी वैसे रहते हैं’…’मोदीजी मां से प्यार करते हैं’ ’मोदीजी मां के साथ नहीं रहते हैं’…आदि-आदि…। प्रधानमंत्री होते हुए भी मोदी कितने सरल, कितने निस्पृही, कितने असांसारिक, कितने मेहनती, कितने आम आदमी हैं। वो देश के लिए बने हैं और देश उनके लिए बना है। इंटरव्यू का दिलचस्प और गौरतलब पहलू यह दिखाना था कि जैसे वो सार्वजनिक जीवन में दिखते हैं, उनका निजी संसार ठीक उससे उल्टा है। इंटरव्यू के बहाने आम आदमी के रूप में खुद की सार्वजनिक प्रस्तुति में मोदी के भीतर के ही कई विरोधाभास उभर कर आ रहे हैं।

मोदी ने अपने सार्वजनिक जीवन में कई रूप धारण किए हैं। प्रधानमंत्री के पद पर आसीन होने के बाद वो किसी भी रूप में कभी भी उदारवादी अथवा समन्वयवादी नजर नहीं आए, जबकि अपने इंटरव्यू में वो विपक्षी नेताओं से अच्छे संबंधों की दुहाई देते नजर आते हैं। उन्हें लगता है कि पार्लियामेंट में साथ खाना खा लेने अथवा गपशप कर लेना मात्र ही उनके उदार होने का प्रमाण है। लोकसभा में उनकी बॉडी-लेंग्वैज उनकी भाव-भंगिमाओं के अहंकार में पिरोती नजर आती है। चुनाव-अभियान में उनकी भाषा-शैली ने लोकतांत्रिक परम्पराओं को रसातल में ढकेल दिया है। वो देश के पहले ऐसे प्रधानमंत्री हैं, जो न केवल राष्ट्रीय नेता, बल्कि क्षेत्रीय पार्टी के क्षत्रपों और मुख्यमंत्रियों के खिलाफ भी नामजद हेट-स्पीच देते हैं। इसके पहले किसी भी प्रधानमंत्री को इस स्तर पर नेताओं की निंदा करते हुए नहीं देखा था।

प्रधानमंत्री पिछले कई दिनों से अलग-अलग चैनल्स और अखबार के संवाददाताओं को नियोजित तरीके से इंटरव्यू दे रहे हैं। प्रधानमंत्री का इंटरव्यू न्यूज एजेंसी एएनआई द्वारा प्रसारित किया गया, जिसका लगभग सभी न्यूज-चैनलों ने लाइव प्रसारण किया।

नरेन्द्र मोदी नख से शिख तक आकंठ राजनीतिज्ञ हैं। उनकी कोई भी बात अराजनीतिक नहीं होती है। उसी प्रकार उनका यह गैर-राजनीतिक इंटरव्यू भी गैर-राजनीति नहीं था। चुनाव अभियान के तीसरे चरण के बाद प्रायोजित यह इंटरव्यू सबेरे 9 से 10 बजे तक हर चैनल पर खूब देखा गया। उसके बाद सोशल मीडिया पर मोदीभक्तों के बीच इसकी लहरें उठने लगीं। दिलचस्प पहलू यह भी है कि इस साक्षात्कार के दौरान मोदी सवाल पूछने वाले फिल्म-स्टार अक्षय कुमार के प्रति जितने उदार, हंस-मुख और सद्भावना भरे नजर आ रहे थे, उतने वो अपने चहेते टीवी-एंकरों के साथ भी नजर नहीं आते हैं। उनका यह एटीट्यूड मीडिया के प्रति उनकी वितृष्णा, नापसंदगी और असहजता का परिचायक है। अथवा मोदी को ग्लैमर पसंद है।

 

सम्प्रति- लेखक श्री उमेश त्रिवेदी भोपाल एनं इन्दौर से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के प्रधान संपादक है। यह आलेख सुबह सवेरे के 25 अप्रैल के अंक में प्रकाशित हुआ है।वरिष्ठ पत्रकार श्री त्रिवेदी दैनिक नई दुनिया के समूह सम्पादक भी रह चुके है।