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मध्यप्रदेश में सत्ता विकेन्द्रीकरण का केन्द्र बनते कमलनाथ – अरुण पटेल

अरूण पटेल

पिछले कुछ दशकों से मध्यप्रदेश की राजनीति में सत्ता का वास्तविक केन्द्र मुख्यमंत्री सचिवालय हुआ करता था, लेकिन अब जबकि सत्ता की कमान कमलनाथ के हाथों आई है तो उन्होंने पुराने ढर्रे पर चली आ रही प्रशासनिक व्यवस्था और राजनैतिक शैली के बदलाव का वाहक बनने का बीड़ा उठा लिया है। एक तो उन्होंने सभी को केबिनेट मंत्री का दर्जा देकर अधिकार सम्पन्न बनाया है तो वहीं दूसरी ओर यह भी साफ कर दिया है कि प्रशासन के संचालन का दायित्व अब मुख्यमंत्री सचिवालय का नहीं अपितु विभाग का होगा और हर मंत्री अपने विभाग के प्रभारी की तरह फैसले करेगा। सत्ता के विकेंद्रीकरण के पहरुए के रुप में बड़े ही सधे हुए कदमों से कमलनाथ आगे बढ़ रहे हैं ताकि लोगों को भी बदलाव का अहसास हो और हर मंत्री के भीतर जवाबदेही का भाव भी पैदा हो सके। मुख्यमंत्री सचिवालय में सन्निहित रहे अधिकारों के मकड़जाल की केंद्रीयकृत व्यवस्था को विकेंद्रीकृत करने के काम को किस प्रकार अंजाम दिया जाए इसकी जिम्मेदारी नवागत मुख्य सचिव की होगी ताकि मुख्यमंत्री जिस नये ढांचे को विकसित करना चाहते हैं वह मूर्तरुप ले सके। लोकसभा चुनाव यानी मिशन 2019 में मध्यप्रदेश से कांग्रेस को भाजपा से अधिक सीटें मिलें यह कमलनाथ का मकसद है। मंत्रिमंडल में युवाओं को महत्वपूर्ण विभाग भी इस मकसद को पूरा करने के लिए सौंपे गए हैं ताकि अनुभव के साथ युवा जोश का पूरा-पूरा उपयोग कर कांग्रेस का और अधिक जनाधार सीमित समय के भीतर बढ़ाया जा सके।

कमलनाथ तो पद संभालते ही एक्शन में आ गए थे और अब विभाग वितरण के साथ ही मंत्रियों को भी तेजगति से न केवल निर्णय करने होंगे बल्कि वे निर्णय धरातल पर भी उतरें इसकी समुचित चिन्ता भी करना होगी, क्योंकि लोकसभा चुनाव के लिए तीन-चार माह का ही समय बचा है। चुनाव आचार संहिता लागू होने के पूर्व कमलनाथ की नई टीम को लोगों को यह महसूस कराना होगा कि बदलाव की जिस आशा व अपेक्षा के साथ उन्होंने सत्ता सौंपी है तथा जिस वचनपत्र पर भरोसा किया है उसे अमलीजामा पहनाने में कोई कोर-कसर नहीं रखी जा रही है। मुख्यमंत्री ने पहले ही दिन यह साफ कर दिया था कि मैं ऐसा व्यक्ति नहीं कि अधिकारों का केंद्रीयकरण करुं, मैं सभी को अधिकार दूंगा, लेकिन यह भी देखूंगा कि उसका दुरुपयोग न हो। परिवर्तन हो चुका है और अब समय है काम करने के तौर-तरीकों व नजरिए में बदलाव का। कमलनाथ का जोर इस बात पर है कि जनता को यह अहसास होना चाहिए कि सरकार उसकी सेवा के लिए है और कांग्रेस के वचनपत्र के क्रियान्वयन की समयबद्ध कार्ययोजना बनाकर उस पर अमल किया जाए। शासन में लापरवाही और सुस्ती बर्दाश्त नहीं होगी और इस मामले में जीरो टॉलरेन्स की नीति पर अमल होगा। उनका यह भी साफ कहना है कि अब प्रशासनिक व्यवस्थाओं का केंद्र बिन्दु मुख्यमंत्री सचिवालय नहीं होगा। नियमानुसार किए जाने वाले कार्य नियमित कार्यप्रणाली से होने चाहिए और उनके समक्ष केवल ऐसे विषय लाये जायें जो नियमित व्यवस्था में नहीं हो सकते हैं। विभाग के संचालन का दायित्व पूरी तरह से विभाग के मंत्री का होगा। इस प्रकार यह भी साफ कर दिया गया है कि वचनपत्र के जो बिन्दु जिस विभाग से संबंधित होंगे उसके क्रियान्वयन का दायित्व भी उसी विभाग का होगा। शासन-प्रशासन में नवाचार की शुरुआत हो चुकी है अब देखने वाली बात यही होगी कि आगे चलकर यह नई व्यवस्था कितनी अधिक जनोन्मुखी और परिणामोन्मुखी होती है।

कमलनाथ का युवाओं पर भरोसा

मुख्यमंत्री कमलनाथ ने लोकसभा चुनाव को मद्देनजर रखते हुए जिन 28 विधायकों को अपनी टीम में शामिल किया है उसमें क्षेत्रीय, जातीय और गुटीय संतुलन का पूरा-पूरा ध्यान रखा गया है। विभागों के वितरण में इस प्रकार का सामंजस्य किया गया कि सभी गुटों से संबंधित मंत्रियों को कुछ महत्वूपर्ण विभाग भी मिलें। जितने मंथन के बाद टीम का गठन हुआ और उससे अधिक समय लगाकर विभागों का वितरण हुआ उसको देखकर यह कहा जा सकता है कि सभी के साथ न्याय किया गया है और सबको अपने-अपने ढंग से अपनी क्षमताएं दिखाने का अवसर मिला है। इससे पूर्व चाहे किसी पार्टी की सरकार रही हो, कोई भी मुख्यमंत्री रहा हो, राज्यमंत्रियों के मन में हमेशा यह टीस रही है कि उन्हें विभागीय केबिनेट मंत्री कोई विशेष काम नहीं देता है और वह केवल नाममात्र के मंत्री रहते हैं। यह शिकायत आमतौर पर राज्यमंत्री करते रहे हैं, अब इस प्रकार की कोई शिकायत कमलनाथ मंत्रिमंडल में देखने को नहीं मिलेगी क्योंकि इसमें सभी केबिनेट मंत्री हैं और अपने-अपने विभाग के इस नाते प्रभारी भी हैं। अब मंत्रियों के पास कोई बहाना नहीं होगा क्योंकि नई व्यवस्था में अधिकारों का विकेंद्रीकरण होगा और विभागीय मंत्री अपने विभाग का संचालन करने पूरी तरह स्वतंत्र होंगे। अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़े वर्ग के मंत्रियों को भी भारी-भरकम विभाग देकर सत्ता में भरपूर भागीदारी का अवसर दिया गया है। अनुसूचित जनजाति वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाले बाला बच्चन को गृह, जेल के साथ ही मुख्यमंत्री से सम्बद्ध किया गया है। ओंकार सिंह मरकाम को जनजाति कार्य, विमुक्त एवं घुमक्कड़ जनजाति कल्याण विभाग सौंपा गया है। बाला बच्चन जहां वरिष्ठ आदिवासी नेता हैं तो वहीं ओंकार सिंह मरकाम युवा आदिवासी चेहरा हैं। उमंग सिंघार को वन, सुरेंद्र सिंह हनी को पर्यटन एवं नर्मदा घाटी विकास विभाग सौंपे गए हैं। आदिवासियों की पुरानी व नई पीढ़ी की आकांक्षाओं के अनुरुप उनकी कसौटी पर सरकार खरी उतरे उसका दायित्व इस वर्ग के अनुभवी नेताओं के साथ-साथ युवाओं को भी सौंपा गया है। अनुसूचित जाति वर्ग से सज्जन सिंह वर्मा को लोक निर्माण एवं पर्यावरण, डॉ. विजयलक्ष्मी साधौ को संस्कृति, चिकित्सा शिक्षा और आयुष, तुलसीराम सिलावट को लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, इमरती देवी को महिला एवं बाल विकास विभाग, डॉ प्रभुराम चौधरी को स्कूल शिक्षा विभाग, लखन घनघोरिया को सामाजिक न्याय, अनसूचित जाति कल्याण विभाग सौंपे गए हैं। मंत्रिमंडल में दो ब्राह्मण चेहरे हैं उनमें से एक पी.सी. शर्मा को विधि एवं विधायी कार्य के साथ मुख्यमंत्री से सम्बद्ध कर उनका महत्व बढ़ाया गया है तो दूसरे ब्राह्मण चेहरे तरुण भानोट के पास वित्त, योजना आर्थिक एवं सांख्यिकीय जैसा महत्वपूर्ण विभाग है। युवा चेहरों में शामिल जयवर्द्धन सिंह को नगरीय विकास एवं आवास विभाग, जीतू पटवारी को उच्च शिक्षा, खेल एवं युवक कल्याण, कमलेश्‍वर पटेल को पंचायत एवं ग्रामीण विकास, सचिन यादव को किसान एवं कृषि विकास, उद्यानिकी एवं खाद्य प्रसंस्करण, प्रियव्रत सिंह को ऊर्जा विभाग, प्रद्युम्मसिंह तोमर को खाद्य नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण विभाग सौंपे गये हैं।

डॉ. गोविंद सिंह को सहकारिता एवं संसदीय कार्य विभाग सौंपे गये हैं। राजनीतिक दृष्टि से सहकारिता एक महत्वपूर्ण विभाग है। खंडित जनादेश कांग्रेस को मिला है और उसने निर्दलीयों, बसपा और सपा के समर्थन से सरकार बनाई है उसको देखते हुए संसदीय कार्यमंत्री का काम भी और अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है। हुकुमसिंह कराड़ा जल संसाधन विभाग, प्रदीप जायसवाल को खनिज संसाधन, आरिफ अकील को भोपाल गैस त्रासदी, पिछड़ा वर्ग अल्पसंख्यक कल्याण तथा सूक्ष्म एवं लघु उद्योग विभाग, बृजेन्द्र सिंह राठौर को वाणिज्यिक कर, लाखन सिंह यादव को पशुपालन, मछली पालन, गोविंदसिंह राजपूत को परिवहन एवं राजस्व, सुखदेव पांसे लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी, हर्ष यादव को कुटीर एवं ग्रामोद्योग तथा नवकरणीय ऊर्जा, महेंद्रसिंह सिसोदिया को श्रम विभाग सौंपा गया है। इसके अलावा जनसंपर्क सहित अन्य महत्वपूर्ण सभी विभाग मुख्यमंत्री कमलनाथ ने अपने पास रखे हैं। विभाग वितरण को लेकर जिस प्रकार की खींचतान होने के समाचार निरन्तर मीडिया में आ रहे थे उसके विपरीत जब विभागों का वितरण सामने आया तो उसके बाद सभी गुटों व धड़ों को इस ढंग से साधने का कौशल कमलनाथ ने दिखाया कि सबके हिस्से में कुछ न कुछ महत्वपूर्ण काम आ ही गया।

और यह भी

टीम कमलनाथ के 28 मंत्रियों के नामों की घोषणा के साथ ही कांग्रेस पार्टी के कुछ विधायकों और निर्दलीयों में असंतोष के जो समाचार आ रहे हैं उसके बाद से राजनीतिक गलियारों में सरकार की स्थिरता को लेकर कयास लगने लगे थे और यह दावा होने लगा था कि कुछ असंतुष्ट विधायक भाजपा के संपर्क में हैं। प्रदेश कांग्रेस समन्वय समिति के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिह, जिन्होंने पर्दे के पीछे रहकर डेढ़ दशक के सत्ता से वनवास को समाप्त कर कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनाने में अहम् भूमिका अदा की, का दावा है कि कोई भी विधायक अब नाराज नहीं है और सबसे बात हो चुकी है। दिग्विजय का यह भी दावा है कि कांग्रेस सरकार पूरे पांच साल चलेगी। दिग्विजय सिंह का कहना है कि भाजपा के कुछ विधायक उनके संपर्क में हैं।

 

सम्प्रति-लेखक श्री अरूण पटेल अमृत संदेश रायपुर के कार्यकारी सम्पादक एवं भोपाल के दैनिक सुबह सबेरे के प्रबन्ध सम्पादक है।