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नीलकंठ’ नेता विष पी रहे तो जनता के हिस्से का अमृत कहां हैं? – उमेश त्रिवेदी

उमेश त्रिवेदी

शनिवार को बेंगलुरू में आयोजित सम्मान समारोह में कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी के आंसुओं में भीगे इस भावुक डायलॉग ने देश के राजनीतिक हलकों में सनसनी पैदा कर दी है कि ’मैं भगवान नीलकंठ की तरह जहर पी रहा हूं। आप सभी मेरे मुख्यमंत्री बनने से भले ही खुश हों, लेकिन मैं खुश नहीं हूं। मैं चाहूं तो अभी मुख्यमंत्री पद छोड़ सकता हूं।’ किसी नेता का मुख्यमंत्री बनकर भी नाखुश होने का यह बिरला उदाहरण है।

कुमारस्वामी का मात्र दो महीनों में ही कांग्रेस समर्थित गठबंधन सरकार के मुखिया के रूप में यूं पसर जाना हैरत पैदा करता है।उनकी आंखों में आंसुओं के रूप में ढुलकते राजनीतिक-वैराग्य का यह प्रवाह सत्ता से विमोह का परिचायक नहीं है। यह ’एब्सल्यूट-पॉवर’ नहीं मिलने से उपजी कुंठाओं का नाट्य-रूपान्तर है। वो खुद को ’नीलकंठ’ बताकर जनता पर एहसान जता रहे हैं। कुमारस्वामी पहले अकेले राजनेता नहीं हैं जो अपनी राजनीति और स्वयं को ’नीलकंठ’ के रूप में अभिव्यक्त करते हैं। भारत के ज्यादातर नेता सिंहासन की जिम्मेदारियों को कांटों का ताज निरूपित करते रहे हैं।

कुमारस्वामी का आर्तनाद राजनेताओं के राजकाज करने की रणनीति का हिस्सा है, जिससे भाव-विह्वल होकर आम-लोग नेताओं से ज्यादा प्रलाप करने लगते हैं। राजनीति में जनता को ठगने वाली भावुक प्रवृत्तियों का त्रासद सिलसिला अंतहीन है। कुमारस्वामी जैसे विषपायी नेताओं और देश की जहर बुझी राजनीति की रहस्यमयी जुगलबंदी में फूटने वाले सत्ता के सुरों को समझना-बूझना आसान नहीं है।चांद-तारे और सूरज की गति को पढ़ कर देश की जनता की जन्मकुंडली यही नेता लिखते हैं, जिसमें सबके लिए ’अच्छे दिन’ होते हैं और ’सबका साथ, सबका विकास’ होता है।

यदि ये नेता नीलकंठ की तरह गरल गटक रहे हैं तो जनता के हिस्से में जो अमृत आना चाहिए वो कहां है? यहां नीलकंठ का उल्लेख पौराणिक कथाओं के अमृत-मंथन प्रसंग की ओर ध्यानाकर्षण करता है। दुर्वासा मुनि के शाप से मुक्ति पाने और देवताओं को दरिद्रता से मुक्ति दिलाने के लिए भगवान विष्णु के परामर्श पर देवताओं और असुरों ने मिल कर समुद्र-मंथन किया था। इसमें अमृत के साथ विष भी निकला था। सृष्टि की रक्षा के लिए यह विष भगवान शिव ने पी लिया था। इसीलिए वो नीलकंठ अथवा विषपायी भी कहलाते हैं। भगवान शिव ने विष को अपने गले में उतार कर सृष्टि की रक्षा की थी, मनुष्य का भला किया था। सवाल यह है कि खुद को नीलकंठ निरूपित करने वाले ये नेता कौन सा गरल पीकर जनता का कल्याण कर रहे हैं?

इससे भी आगे सवाल यह है कि देश की राजनीति जहर पी रही है अथवा जहर उगल रही है। देश की राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्थाओं में जो अमूर्त जहर इंजेक्ट किया जा रहा है, वह अफीम, धतूरे, संखिया, पारा जैसे कई विषों से ज्यादा खतरनाक है। भौतिक अथवा पदार्थ के रूप में मौजूद विषों का उपचार संभव है। व्यक्ति-विशेष तक ही सीमित इनके जहरीले प्रभाव से समाज निपट सकता है। लेकिन बड़ा खतरा वह अमूर्त जहर है, जो देश की वर्तमान राजनीति उगल रही है। राजनीति में धर्मांधता, साम्प्रदायिकता, जातीयता, क्षेत्रीयता का जहर समाज में समरसता, समन्वय और सौहार्द की सारी मर्यादाओं को तोड़कर कट्टरता के नए आयाम स्थापित कर रहा है। धर्म के साथ राजनीति के घालमेल ने आपसी तालमेल के सारे उपकरणों को खारिज कर दिया है।

पिछले दिनों पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज के तत्वावधान में कानून के छात्रों ने देश में नफरत भरे भाषणों को लेकर एक सर्वेक्षण किया था। मई 2014 से लेकर मार्च 2018 तक राजनेताओं ने जिन राज्यों में नफरत भरे भाषण दिए, उनमें बिहार सबसे ऊपर है। इस दरम्यान 100 नफरत भरे भाषण दिए गए, उनमें 38 भाषण सिर्फ बिहार में दिए गए थे। उत्तर प्रदेश में 31 भाषण विभिन्न पार्टियों के नेताओं ने दिए। जम्मू-कश्मीर, महाराष्ट्र, उत्तराखंड, दिल्ली, तेलंगाना, गुजरात, राजस्थान, बंगाल, कर्नाटक और छत्तीसगढ़ में 28 भाषण दिए गए, जिनका मंतव्य नफरत फैलाकर, ध्रुवीकरण करके किसी भी प्रकार से चुनाव जीतना था।

भाजपा ने सबसे ज्यादा 46 नफरत बुझे भाषण दिए। ऐसे नेताओं में प्रधानमंत्री मोदी, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह, केन्द्रीय मंत्री गिरिराज सिंह, नितिन गडकरी, योगी आदित्यनाथ, साक्षी महाराज आदि नेता शरीक हैं। कांग्रेस ने 13, राजद ने 14, जदयू ने 4, एआईएमआईएम ने 3 और अन्य ने 14 भाषण दिए।

सत्ता के इन विषपायी नेताओं का यह नफरत फैलाने वाला आचरण खुलासा करता है कि देश की राजनीति इतनी जहरबुझी क्यों है।खुद को नीलकंठ कहने वाले नेताओं को समझना होगा कि असली नीलकंठ तो जनता है, जो इतना जहर पीकर भी जिंदा है।

 

सम्प्रति- लेखक श्री उमेश त्रिवेदी भोपाल एनं इन्दौर से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के प्रधान संपादक है। यह आलेख सुबह सवेरे के 16 जुलाई के अंक में प्रकाशित हुआ है।वरिष्ठ पत्रकार श्री त्रिवेदी दैनिक नई दुनिया के समूह सम्पादक भी रह चुके है।