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‘किलिंग इंस्टिंक्ट’ पैदा करना कमलनाथ के लिए बड़ी चुनौती – अरुण पटेल

अरूण पटेल

कांग्रेस आलाकमान ने इस उम्मीद के भरोसे पूर्व केन्द्रीय मंत्री कमलनाथ को बतौर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष यह जिम्मेदारी सौंपी है कि डेढ़ दशक से चला आ रहा कांग्रेस का सत्ता से वनवास मध्यप्रदेश में समाप्त हो। इसके लिए पार्टी ने उनके साथ ही एक युवा चेहरा ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी आगे कर दिया है और इन दोनों से बड़ी उम्मीदें लगा रखी हैं। कमलनाथ ने एक कुशल सर्जन की तरह पार्टी की कमजोर नस पर लगभग हाथ रख दिया है, क्योंकि अब वे सर्वोच्च प्राथमिकता संगठन को मजबूत करने और जहां-जहां पार्टी कमजोर है उसे दुरुस्त करने को दे रहे हैं। उनका यह मानना है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और अन्य नेता तो केवल माहौल बना सकते हैं, परन्तु गांव-गांव में उस माहौल को पार्टी के पक्ष में वोट में परिवर्तित करने का असली काम तो उसी कार्यकर्ता को करना है जो गांव में रहता है और हर सुख-दुख में लोगों के बीच खड़ा रहता है। सबसे पहले कमलनाथ के सामने बड़ी चुनौती यही है कि वे कांग्रेस कार्यकर्ताओं के मन में चुनाव जीतने की ललक पैदा करते हुए उनमें “किलिंग इंस्टिंक्ट’’ पैदा करें जिसका उनमें अभाव है। किलिंग इंस्टिंक्ट यानी मारक क्षमता पैदा करना इसलिए जरूरी है क्योंकि इस बार चुनावी मुकाबला अकेले शिवराज के चेहरे से नहीं होगा बल्कि सारे सूत्र अमित शाह के हाथों में होंगे और वे हर चुनाव को युद्ध की तरह लड़ते हैं जिसका अंतिम लक्ष्य जीत हासिल करने के लिए साम-दाम-दंड-भेद यानी हर तौर तरीके अपनाने से परहेज नहीं करते। यदि कमलनाथ ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं की कमजोरी को दूर करते हुए उनमें मारक क्षमता पैदा कर दी तो ही उन्हें सफलता मिलेगी, ऐसी उम्मीद करना चाहिए।

यह सही है कि दिग्विजय सिंह पूरे प्रदेश के कांग्रेसजनों को एकजुट कर देंगे, नेता दौड़ा कर माहौल बना देंगे, लेकिन कार्यकर्ताओं में करो या मरो का भाव पैदा करने के लिए कमलनाथ के साथ ही दिग्विजय सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया, अजय सिंह, सुरेश पचौरी आदि नेताओं को ज्यादा मशक्कत करना होगी। केवल एकजुटता इस बार सफलता का मूलमंत्र नहीं हो सकती बल्कि इसके लिए मतदान केन्द्र और जमीनी स्तर पर तैनात कार्यकर्ताओं में वह भाव पैदा करना होगा जिसका उनमें अभाव है। क्योंकि कांग्रेस का चुनावी मुकाबला अमित शाह की उस सेना से है जिसमें यह भाव कूट-कूट कर भरा है कि हर हाल में चाहे परिस्थितियां कितनी भी प्रतिकूल हों उन्हें जीत का परचम लहराना ही है। भाजपा को चुनावी मैदान में शिकस्त देने के लिए कांग्रेस हाईकमान के साथ ही कमलनाथ, दिग्विजय सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया यह मानते हैं कि प्रदेश में भाजपा विरोधी मतों का बिखराव हर कीमत पर रोका जाना चाहिए। पहली बार कांग्रेस ने यह मन बना लिया है कि वह बहुजन समाज पार्टी, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी, समाजवादी पार्टी और शरद यादव की अगुवाई वाले जेडीयू से अलग हुए धड़े के साथ चुनावी तालमेल किया जाए। इसके लिए कांग्रेस जरूरत पड़ी तो 30 से कुछ अधिक सीटें भी छोड़ सकती है। तालमेल की कोशिश करते समय भले ही सोनिया गांधी और मायावती के बीच नजदीकियां बढ़ रही हों लेकिन भाजपा की कोशिश होगी कि किसी भी हालत में कांग्रेस ऐसा महागठबंधन नहीं बना पाये जिससे कि भाजपा विरोधी मतों का एकत्रीकरण एक जगह हो और इसके लिए वह पूरी कोशिश भी करेगी। बसपा से अलग हुए या बसपा से जुड़े कुछ नेताओं तथा गोंडवाना गणतंत्र पार्टी में बिखराव भी हो सकता है।

पिछले डेढ़ दशक से सत्ता से बाहर चली आ रही कांग्रेस के नेताओं को सबसे बड़ी यही चिन्ता सता रही है कि साल के अन्त में होने वाले विधानसभा चुनाव में यदि भाजपा विरोधी मतों का ध्रुवीकरण नहीं हो पाया तो इस बार भी सत्ता उसके हाथ से फिसल सकती है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी इस कोशिश में लगे हैं कि प्रदेश में बसपा व सपा से समझौता हो जाए और ऐसे संकेत ज्योतिरादित्य सिंधिया भी पूर्व में देते रहे हैं। कमलनाथ भी अब इसी उधेड़बुन में हैं कि इनके साथ ही गोंडवाना गणतंत्र पार्टी से कांग्रेस का समझौता हो जाए ताकि चुनावी मुकाबले को जनता बनाम भारतीय जनता पार्टी में परिवर्तित कर दिया जाए, क्योंकि नाथ यह मानते हैं कि सभी वर्ग 15 साल के शासन से परेशान हैं। यह पहला अवसर होगा जब कांग्रेस किसी दल से चुनाव पूर्व गठबंधन कर प्रदेश में सत्तासीन होने का प्रयास कर रही है। हालांकि लम्बे समय से प्रदेश में भाजपा और कांग्रेस के बीच पूरी तरह से ध्रुवीकरण हो चुका है और किसी तीसरे दल के लिए कोई खास जगह नहीं है, लेकिन यदि हाथ को हाथी का साथ मिल जाता है तो चुनावी समीकरण एकदम बदल जायेंगे और फिर भाजपा की राह अपेक्षाकृत काफी कठिन हो जाएगी। वैसे मध्यप्रदेश में 1990 में बसपा का उदय हुआ था और 28 साल के लम्बे अंतराल के बाद भी यह पार्टी न तो मध्यप्रदेश में और न ही छत्तीसगढ़ में तीसरी शक्तिशाली ताकत बन पाई, लेकिन उसकी इतनी हैसियत अवश्य बन गयी है कि वह चुनाव पूर्व यदि किसी दल से गठबंधन कर लेती है तो चुनावी परिदृश्य पलटने की ताकत रखती है। मायावती ऐसी राजनेता हैं जिनमें यह क्षमता है कि वे अपने समर्थक शत-प्रतिशत मतदाताओं को उस गठबंधन के पक्ष में खड़ा कर सकती हैं, जिसके साथ वे जुड़ जायें। 1996 के लोकसभा चुनाव में बसपा ने उस समय सबको चौंका दिया था जब सतना लोकसभा क्षेत्र में उसके उम्मीदवार सुखलाल कुशवाहा ने प्रदेश के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों वीरेंद्र कुमार सखलेचा भाजपा और तिवारी कांग्रेस के अर्जुन सिंह को पराजित कर चुनाव जीत लिया था, इस चुनाव में अर्जुन सिंह तीसरे नम्बर पर आये थे। इसी लोकसभा चुनाव में बसपा ने रीवा की लोकसभा सीट भी जीती थी।

सोनिया-मायावती की नजदीकियां इसलिए बढ़ रही हैं क्योंकि दोनों का मकसद भाजपा की सत्ता को उखाड़ फेंकना है। समाजवादी पार्टी का प्रभाव प्रदेश में बुंदेलखंड अंचल की दो दर्जन और महाकौशल की लगभग आधा दर्जन सीटों पर रहा है लेकिन धीरे-धीरे यह असर कम होता गया और फिलहाल विधानसभा में सपा का एक भी विधायक नहीं है लेकिन फिर भी उसका कुछ निश्चित वोट बैंक है जो यादवों व अन्य पिछड़ी जातियों का है। बहुजन समाज पार्टी का वोट बैंक अनुसूचित जाति वर्ग में है और यह प्रतिबद्ध मतदाताओं का ऐसा समूह है जिसके लिए बहनजी का इशारा ही अंतिम आदेश होता है। कांग्रेस को सबसे ज्यादा नुकसान बसपा से होता आया है क्योंकि उसके परम्परागत वोट बैंक में सेंध लगाने का काम कांशीराम के जमाने से प्रारंभ हुआ था और मायावती ने उसे परवान चढ़ाया। मध्यप्रदेश में सरकार बनाने के लिए 116 सीटों की जरूरत होती है और बसपा की यह हैसियत है कि यदि समझौता नहीं होता है तो वह कांग्रेस का खेल पूरी तरह बिगाड़ सकती है। प्रदेश की उत्तरप्रदेश से लगी हुई विधानसभा सीटों में बसपा और सपा दोनों का जोर रहता है। जहां तक दलित मतदाताओं का सवाल है वह प्रदेश के अलग-अलग अंचलों में अलग-अलग दलों के साथ रहा है। उत्तरप्रदेश से लगे इलाकों में वह बसपा के साथ रहता है तो महाकौशल और उससे लगे कुछ क्षेत्रों में दलित मतदाता का झुकाव कांग्रेस की तरफ रहता है जबकि इंदौर-उज्जैन संभाग में दलितों का झुकाव सामान्यत: भाजपा की ओर देखा गया है, इसलिए कांग्रेस की कोशिश यही है कि बसपा के साथ अन्य छोटे दलों से भी चुनाव पूर्व तालमेल किया जाए।

और यह भी जिस ‘डीएनए’ विवाद ने बिहार के विधान सभा चुनाव में अच्छा-खासा असर दिखाया था वही तराना कुछ नये संदर्भों के साथ कमलनाथ ने यहां भी छेड़ दिया है। भाजपा पर तंज कसते हुए उन्होंने कहा कि भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के डीएनए में बड़ा अन्तर है। भाजपा के डीएनए में खोट है, वे बातें बनाना जानते हैं, जबकि कांग्रेस के डीएनए में एक संविधान है, नीति है, विचार है और साफ नीयत है। कांग्रेस ने कमजोर वर्गों की लड़ाई लड़ी है और हमेशा उनके साथ खड़ी है। शुक्रवार को कमलनाथ प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में सांसद राजमणि पटेल के नेतृत्व में 40 दिन की निकाली गयी संविधान बचाओ यात्रा के समापन समारोह में बोल रहे थे। इस यात्रा ने प्रदेश के 51 जिलों, 600 गांवों और 800 किमी का सफर तय करते हुए जन-जागरण के माध्यम से कांग्रेस का आधार बढ़ाने का प्रयास किया। अब यह तो विधानसभा चुनाव के बाद ही पता चलेगा कि राजमणि की बातें मतदाताओं के कितनी गले उतरीं।

 

सम्प्रति-लेखक श्री अरूण पटेल अमृत संदेश रायपुर के कार्यकारी सम्पादक एवं भोपाल के दैनिक सुबह सबेरे के प्रबन्ध सम्पादक है।