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म.प्र. में चुनावी शतरंज पर भाजपा-कांग्रेस ने फिट किए सियासी मोहरे – अरुण पटेल

अरूण पटेल

राज्यसभा के लिए मप्र विधानसभा से जो तीन नए चेहरे पहली बार चुने गए हैं उनका चयन भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों ने बड़े ही सोच विचार कर किया है। राज्य में इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं ऐसे में राजनीतिक फायदे की दृष्टि से दोनों ही दलों की यह कोशिश है कि महाकोशल और विंध्य अंचल के साथ ही पिछड़े वर्ग की राजनीति को भी साधा जाए। भाजपा ने लोकतंत्र सेनानी संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष कैलाश सोनी और विंध्य अंचल के ठाकुर नेता अजय प्रताप सिंह तथा कांग्रेस ने पिछड़े वर्ग के विंध्य अंचल के नेता एवं पूर्व मंत्री राजमणि पटेल को राज्यसभा भेजा है। इनके माध्यम से भाजपा ने जहां विंध्य में एक ठाकुर नेता की कमी को पूरा किया है तो वहीं लंबे समय से चली आ रही मांग को देखते हुए महाकोशल क्षेत्र की राजनीति को भी साधने की कोशिश की है। कांग्रेस के पास विंध्य में ठाकुर और ब्राह्मण नेता तो पहले से ही स्थापित हैं, एक पिछड़े वर्ग के नेता के रूप में राजमणि पटेल को इसलिए लाया गया है ताकि वे इस अंचल के साथ ही प्रदेश के अन्य अंचलों में भी कांग्रेस से दूर हो रहे पिछड़े वर्ग के मतदाताओं को फिर से जोड़ सकें। इस प्रकार कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि दोनों ही पार्टियों ने अपने-अपने नजरिए से विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखकर राजनीति के शतरंज में अपने-अपने सियासी मोहरे फिट कर दिए हैं। कैलाश सोनी और अजय प्रताप सिंह को टिकट दिलाने में केंद्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर की महत्वपूर्ण भूमिका रही है और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी इस कारण आसानी से अपनी सहमति दे दी। जहां तक कांग्रेस उम्मीदवार राजमणि पटेल के चयन का सवाल है तो इसके लिए किसी एक व्यक्ति को श्रेय दिया जा सकता है तो वह कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी महासचिव दीपक बावरिया हैं।

‘कर्म कर-फल की चिंता मत कर’ यह कहावत नवनिर्वाचित राज्यसभा सदस्य कैलाश सोनी पर फिट बैठती है। वे हमेशा ईमानदारी, निष्ठा और समर्पित भाव से भाजपा के द्वारा सौंपे गए काम को पूरी सिद्दत से करते रहे हैं। उन्होंने कभी भी इस बात की चिंता नहीं की कि उन्हें इसका फल मिलेगा या नहीं? अनकों बार उनका नाम राज्यसभा के लिए चर्चाओं में रहा लेकिन मौका नहीं मिला। संघर्ष और मुसीबत के समय तो पार्टी को कैलाश सोनी की हमेशा याद आती रही है और उन्हें विधानसभा का टिकट थमाया गया,  लेकिन जब अनुकूल दिन रहते हैं तब शायद टिकट देते समय पार्टी को उनकी याद नहीं आती। महाकोशल अंचल खासकर नरसिंहपुर जिले में सोनी पार्टी के निष्ठावान और समर्पित कार्यकर्ता रहे हैं उनको प्रत्याशी बनाकर भाजपा ने उन आम जमीनी कार्यकर्ताओं को संदेश दिया है कि पार्टी समर्पित कार्यकर्ताओं की कभी-कभी कदर करती है। इससे ऐसे भाजपाई कार्यकर्ता जो निराश होकर घरों में बैठ गए थे उनकी आंखों में भी उम्मीद की किरण फूटी है, कि देर सवेर उनको भी मौका मिल सकता है। सोनी मीसाबंदियों के संगठन ‘लोकतंत्र सेनानी संघ’ के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं, और टिकट देने के बाद मीसाबंदियों में भी बेहतर संदेश गया है।भाजपा की कोशिश यह है कि मीसाबंदी पूरे प्रदेश में सक्रिय हों और जोश-खरोश से चौथी बार मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में सरकार बनाने के अभियान में पूरे प्राण पण से भिड़ जाएं। सोनी का चयन नरसिंहपुर जिले की राजनीति को संतुलित करने की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है क्योंकि भाजपा सांसद प्रहलाद पटेल के भाई जालम सिंह पटेल को हाल ही में बतौर राज्यमंत्री, सरकार में शामिल कर लिया गया है। जालम सिंह पटेल की जो राजनीतिक शैली है उससे समूचे नरसिंहपुर जिले में अनेक कार्यकर्ता नाराज रहते हैं और कई अपने-अपने घरों में सिमटकर बैठ गए हैं। सोनी ऐसे लोगों को फिर से भाजपा की राजनीति में सक्रिय करने में उत्प्रेरक का काम कर सकते हैं, क्योंकि वे जिला भाजपा के अध्यक्ष हैं और अधिकांश भाजपाई उन्हें पसंद करते हैं। पिछड़े वर्ग का होने के कारण भी इस वर्ग में उनकी अच्छी पकड़ है। राज्यमंत्री पटेल से जिन भाजपाइयों का छत्तीस का आंकड़ा है उन्हें साधने में सोनी प्रभावी भूमिका अदा कर सकते हैं। नरसिंहपुर जिले में पिछले दिनों एक बड़ा किसान आंदोलन हुआ था जिसमें भाजपा नेता एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा ने किसानों के समर्थन में आंदोलन किया था और भाजपा सांसद शत्रुघ्न सिन्हा ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी। अंतत: प्रशासन को उनके सामने झुकना पड़ा था। आज भी नरसिंहपुर और सीमावर्ती जिलों के किसानों में असंतोष है। सोनी मप्र राज्य सहकारी बैंक के उपाध्यक्ष भी रहे हैं उनकी किसानों के बीच अच्छी पैठ है। उन्हें सांसद बनाकर पार्टी ने यह भी कोशिश की है कि किसानों के बीच बढ़ रहे असंतोष दूर करने में वे मददगार होंगे।

अजय प्रताप सिंह युवा मोर्चे की राजनीति से भाजपा प्रदेश संगठन में कई पदों पर रहे हैं और वर्तमान में वे प्रदेश भाजपा के महामंत्री हैं। युवा मोर्चे की राजनीति के दौरान नरेन्द्र सिंह तोमर और शिवराज सिंह चौहान के काफी नजदीक रहे हैं। विंध्य अंचल में भाजपा के पास ब्राह्मण, पिछड़े और आदिवासी वर्गों के नेता हैं लेकिन उनके पास ठाकुर नेता नहीं हैं। मप्र विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ‘राहुल भैया’ बघेली ठाकुर हैं और अजय प्रताप सिंह की राज्यसभा की लॉटरी इसलिए भी खुली है कि वे भी बघेली ठाकुर हैं। राहुल भैया की घेराबंदी करने के उद्देश्य से अजय प्रताप का कद बढ़ाया गया है और दूसरा यह कि आगे पीछे भाजपा को भी एक बड़ा नेता इस वर्ग से मिल ही जाएगा। जहां तक चुनावी मुकाबले का सवाल है अजय प्रताप सिंह उनके सामने नहीं टिक पाते हैं लेकिन अब कद बढ़ गया है सो हो सकता है कि वे अपनी तरफ से पूरी कोशिश करें कि जितनी पकड़ उन्होंने भाजपा नेताओं के बीच बनाई है वैसी ही कुछ पकड़ धीरे-धीरे विंध्य अंचल खासकर सीधी जिले में बनाए और जहां तक संभव हो अजय सिंह को घेरने में थोड़े बहुत सफल हों। वैसे ठाकुरों में ऐसा माना जाता है कि ठाकुरों में जो बड़ा ठाकुर होता है वही उस विरादरी का ज्यादातर समर्थन पा लेता है। उनके राज्यसभा सदस्य बनने से भाजपा ने जो उम्मीदें लगा रखी हैं उसकी कसौटी पर खरा उतरना उनके लिए बड़ी चुनौती होगी। फिलहाल ऐसा लगता है कि अजय सिंह इससे कोई अधिक परेशान होते नजर नहीं आ रहे हैं।

सादगी और ईमानदारी से लो प्रोफाइल में रहकर राजनीति करने वाले, मौजूदा दौर में कांग्रेस की गुटबाजी से दूर रहकर मैदानी राजनीति करने वालों की कांग्रेस में पूछ परख होने लगी है। ऐसा  संदेश कांग्रेस कार्यकर्ताओं को देने की कोशिश में पिछड़े वर्ग के बीच अपने अंचल में सक्रियता के साथ संघर्षरत राजमणि पटेल को राज्यसभा भेजा गया है। मप्र के 60 विधानसभा क्षेत्रों में पटेल (कुर्मी) मतदाताओं की निर्णायक स्थिति है और राजमणि कुर्मी समाज के एक बड़े नेता हैं। इसके साथ ही पिछड़े वर्ग के मतदाताओं को कांग्रेस से जोड़ने और भाजपा में सेंध लगाने के उद्देश्य से वे कारगर साबित हो सकते हैं यह उनके चयन का असली आधार है। राजमणि प्रदेश में खासकर विंध्य अंचल में पिछड़ों की राजनीति में अगुवा रहे हैं और 1972 में वे  एक बड़े तपे तपाए समाजवादी नेता यमुनाप्रसाद शास्त्री को हराकर पहली बार कांग्रेस टिकट पर विधानसभा पहुंचे थे। स्व. अर्जुन सिंह के शिष्यों में उनकी गिनती होती है और दिग्विजय सिंह भी उनको पसंद करते हैं। पिछले करीब तीन दशक से वे पिछड़े वर्ग की राजनीति कर रहे हैं। और वे पिछड़ा वर्ग संगठन के 30 साल से प्रदेशाध्यक्ष हैं। राजमणि अपने संगठन के बैनर तले कई बार सक्रिय रहे हैं और उन्होंने  पिछड़े वर्ग की मांगों को लेकर यात्राएं निकाली हैं। दो साल पहले राजधानी भोपाल में व्यापमं घोटाले को लेकर उन्होंने 7 दिन तक आमरण अनशन किया था। इस प्रकार वे अपने ढंग से अपने पिछड़ा वर्ग के लोगों के बीच लो प्रोफाइल में सक्रिय हैं। विभिन्न सामाजिक संगठनों में से ऐसे लोगों को जो कांग्रेस के लिए उपयोगी साबित हो सकें की खोज करने के दौरान बावरिया की नजर इन पर पड़ी और वे उनकी आंखों में चढ़ गए। प्रदेश कांग्रेस के बड़े नेताओं में कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया, अजय सिंह एवं अरुण यादव के बीच इस बात पर सहमति बनी कि पिछड़े वर्ग के किसी व्यक्ति को प्रत्याशी बनाया जाए। अरुण यादव ने प्रदेश की राजनीति में ही रहना पसंद किया जबकि अन्य नेता उन्हें राज्यसभा में भेजने पर सहमत थे। यादव के राज्यसभा जाने राजी न होने पर नए नाम की जब खोज चालू हुई तो अंततः बावरिया की पहल पर राजमणि के नाम पर सहमति हुई और वे अब राज्यसभा के सदस्य हैं।

 

सम्प्रति-लेखक श्री अरूण पटेल अमृत संदेश रायपुर के कार्यकारी सम्पादक एवं भोपाल के दैनिक सुबह सबेरे के प्रबन्ध सम्पादक है।