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नई पहल: सरकारी नौकरी की राह में ‘मिलिट्री-सेवा’ का बैरियर…? – उमेश त्रिवेदी

उमेश त्रिवेदी

कहना मुश्किल है सरकारी नौकरी चाहने वाले बेरोजगार युवाओं को यह खबर कितनी गुदगुदाएगी कि शासकीय सेवाओं में शामिल होने के पहले उन्हें पांच साल तक अनिवार्य रूप से सेना की नौकरी करना पड़ेगी? थल सेना के 12 लाख सक्रिय और 9 लाख 90 हजार रिजर्व याने करीब 22 लाख के वर्क फोर्स के अलावा लाखों की संख्या में मौजूद पैरा मिलिट्री फोर्स और पुलिस बल की मौजूदगी में सेना में जबरिया भरती का यह उपक्रम लोगों को चौंका रहा है। जबकि सारी दुनिया में सैनिकों की संख्या घटाकर आधुनिक हथियारों को प्राथमिकता दी जा रही है, रक्षा मंत्रालय का यह प्रस्ताव समयानुकूल नहीं लग रहा है।

लोकसभा में रक्षा मंत्रालय की संसदीय समिति ने सरकारी नौकरी चाहने वाले युवाओं के लिए सेना में पांच साल की सेवाओं का मापदण्ड अनिवार्य करने की सिफारिश की है। समिति ने 14 मार्च को यह सिफारिश सेना में वर्क फोर्स की कमी की पूरा करने करने के लिए की है। ‘इंडिया टुडे’ की रिपोर्ट के मुताबिक संसदीय समिति ने कहा है कि भारतीय सेनाओं में अधिकारी स्तर के 7000 और सैनिकों की श्रेणी में 20000 पद खाली पड़े हैं। उसी प्रकार भारतीय वायु सेना में 150 अधिकारी और  1500 सैन्यकर्मी कम हैं। जल सेना में भी 150 अधिकारी और 15000 सैन्यकर्मियों की जरूरत है। रक्षा मंत्रालय सरकारी सेवाओं के पहले सेना की अनिवार्यता की इस पहल को गरमा रहा है। संसदीय समिति ने रक्षा मंत्रालय को तेजी से इस दिशा में बढ़ने की हिदायत दी है। प्रधानमंत्री के अधीन कार्यरत डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनल एण्ड ट्रेनिंग (डीओपीटी) इस सुझाव पर सैन्य-कर्मचारियो की कमियों को दूर करने का अंतिम उपाय मानकर विचार कर रहा है।

यदि संसदीय समिति की रिपोर्ट मान ली जाती है तो भारत दुनिया के उन  27 देशों की कतार में शामिल हो जाएगा, जहां किसी न किसी रूप में नागरिकों के लिए मिलिट्री-सेवा अनिवार्य हैं। इन देशों में प्रमुख रूप से रूस, इजराइल, इजिप्त, डेन्मार्क, सिंगापुर और ऑस्ट्रिया जैसे देश शरीक हैं। इन देशों में नागरिकों को जबरिया मिलिट्री भरती की व्यवस्था नागरिकों की उम्र से जुड़ी है। कॅरियर के हिसाब से सरकारी नौकरी चाहने वाले युवाओं के लिए अनिवार्य मिलिट्री-सेवा के मानदण्ड अभी तक कहीं भी सुनने को नहीं मिले हैं। भारत ऐसा पहला देश है, जहां सरकारी नौकरी के कॅरियर के लिए लालायित युवाओं के लिए मिलिट्री सेवा अनिवार्य करने का अनोखा सुझाव आया है। सवाल यह है कि वर्षों तक  सरकारी नौकरियों के अकाल से जूझने वाले युवा इस नए क्लॉज से कैसे मुठभेड़ करेंगे? सरकारी नौकरियों के आंकड़ों पर गौर करें तो पाएंगे कि अकेले रेलवे विभाग में 30 लाख कर्मचारी हैं, राज्यों के कर्मचारियों की संख्या दो करोड़ के पार जाती है।

सैन्य शास्त्र की नई थ्योरी कहती है कि ज्यादा सैन्य-बल किसी भी राष्ट्र के लिए बोझ होता है। सेना सैनिकों की संख्या से ताकतवर नहीं होती है। ग्लोबल इंडेक्स 2017 की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक 133 देशों की सूची में सैन्य ताकत के मामले में भारत अमेरिका, रूस और चीन के बाद चौथे नम्बर पर है। रूस और इजराइल की तर्ज पर भारत में मिलिट्री सेवा की अनिवार्यता दुनिया के उन देशों की सैन्य-रणनीतियों को नकारने वाली है, जहां सैनिकों की संख्या में भारी कटौती की जा रही है। इनमें चीन सबसे आगे है। चीन के अलावा अमेरिका, फ्रांस जैसे देश भी उसी श्रेणी मे आते हैं। सेना की ताकत का आधार उनके फाइटर प्लेन, युद्धपोत, आधुनिक पनडुब्बी, मिसाइल, कृत्रिम खुफिया क्षमता, सायबर वार में विशेषज्ञता को माना जाता है। अब युद्घ सैनिकों के बल पर नहीं, उन्नत हथियारों के बल पर लड़े और जीते जाते हैं। सेना के आधुनिकीकरण के मामले में भारत काफी पिछड़ा देश है। इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज एंड स्टडीज एंड एनालिसिस के अनुसार भारत में रक्षा बजट का 90 प्रतिशत हिस्सा मैन-पावर की तनख्वाह और पेंशन में खर्च हो रहा है। भाजपा के सांसद रिटायर्ड मेजर जनरल भुवनचंद्र खंडूरी की अध्यक्षता वाली संसदीय समिति ने मार्च 2018 के इसी बजट सत्र में लोकसभा को जानकारी दी  है कि सेना का 68 प्रतिशत साजो-सामान पुराना पड़ चुका है। अर्थ व्यवस्था में भारत से कई गुना मजबूत चीन सैनिकों की संख्या को दस लाख से नीचे लाना चाहता है। ताकि मैन-पावर पर होने वाला खर्च बचाकर वो सेना को आधुनिक हथियारों से लैस कर सके। शासकीय सेवाओं को सेना से नत्थी करने वाले नए फार्मूले को लागू करके भारत उल्टी ओर दौड़ने के लिए लालायित लगता है।

 

सम्प्रति- लेखक श्री उमेश त्रिवेदी भोपाल एनं इन्दौर से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के प्रधान संपादक है। यह आलेख सुबह सवेरे के 16 मार्च के अंक में प्रकाशित हुआ है।वरिष्ठ पत्रकार श्री त्रिवेदी दैनिक नई दुनिया के समूह सम्पादक भी रह चुके है।