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राष्ट्रवाद: ‘खादी- फेब्रिक्स’ का महीन सूत ‘चाईनीज-मांजे’ में बदला – उमेश त्रिवेदी

उमेश त्रिवेदी

राष्ट्रवाद की कताई, बुनाई और धुनाई की तकनीकी के इस नए दौर में समझना मुश्किल होता जा रहा है कि सामाजिक, राष्ट्रीय और निजी जीवन में कौन सा राष्‍ट्रवाद धारण करना मुनासिब होगा अथवा आपकी सामाजिक सेहत के लिए सबसे ज्यादा फायदेमंद होगा? राष्ट्रवाद की अदृश्य लक्ष्मण-रेखाएँ कहीं भी और कभी भी पैरों के नीचे आ सकती हैं, और आप चाहे-अनचाहे राष्ट्रवाद की अस्मिता का हरण करने वाले रावण करार दिए जा सकते हैं। जैसे, समझना मुश्किल है कि यह सवाल राष्ट्रवाद की लक्ष्मण-रेखाओं के इस तरफ है या उस तरफ कि सुंजवान आर्मी कैम्प में आतंकी हमले के दौरान शहीद पांच मुस्लिम सिपाहियों के संदर्भ में एआयएमआयएम के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी की जाहिल और सियासी प्रतिक्रिया पर सेना के उत्तरी कमान के कमाण्डर लेफ्टिनेंट जनरल देवराज अनबू की प्रतिक्रिया कितनी जरूरी और अपरिहार्य थी ? तकनीकी तौर पर ओवैसी की सियासी मंशाओं का जवाब सेना के कमाण्डर के बजाय राजनीतिक-हलकों से, भाजपा या अन्य राजनेताओं की जुबानी आना चाहिए था।

सोशल-मीडिया के सर्किट में सवाल पहले ही कुनमुना रहा था कि पांच मुस्लिम सैनिकों की शहादत पर टीवी-स्क्रीन क्यों खामोश हैं ? खामोशी का सबब यह था कि सॉफ्ट-हिन्दुत्व से मरहम-पट्टी कर रही कांग्रेस में इस मुद्दे पर कुछ कहने का साहस नहीं था और मुसलमान भाजपा की राजनीति का हिस्सा नहीं हैं। ओवैसी की पोलिटिक्स को यह मुद्दा सूट करता था, इसलिए वो उफन पड़े।

बहरहाल, धार्मिक आधार पर सेना को बांटने की साजिशों का माकूल जवाब देना जरूरी है। सवाल इसलिए महत्वपूर्ण है कि मुस्लिम सिपाहियों की शहादत में प्रेरक तत्व छिपे हैं। घटना देश में ऐसे मुसलमानो के बीच तेजी से काम शुरू करने की राह बनाती है, जो देश की मुख्य धारा के साथ जुड़े रहना चाहते हैं। वैसे राष्‍ट्रवाद के सिंथेटिक-दौर में ऐसे सवालों के उत्तर ढूंढना खतरनाक है, फिर भी वक्त आईना लेकर सामने आ ही गया है, तो चेहरे की हकीकत पर नजर डालने में बुराई नहीं है।

21 वीं सदी के राष्ट्रवाद की दिक्कतें अलहदा हैं। ‘इंडिया फर्स्ट’ का राष्ट्रवाद गांधी के चरखे के महीन सूत से बुने खद्दरधारी राष्ट्रवाद के फेब्रिक्स से एकदम भिन्न है। वर्तमान पीढ़ी के पास नायाब सा आसान नुस्खा सहज उपलब्ध नहीं है कि- ”मां खादी की चादर दे दे, मै ‘गांधी’ बन जाऊं…।” राष्ट्रवाद के तकाजे भिन्न हो चले हैं। गांधी का राष्ट्रवाद चरखे पर सूत कातकर आसानी से धारण किया जा सकता था, लेकिन ‘इंडिया-फर्स्ट’ की हुकूमत में राष्ट्रवाद का फेब्रिक्स खादी के महीन, मासूम और मुलायम सूत को नकार कर रेयान, पोलिएस्‍टर या नायलॉन जैसे धागों से आगे चाइनीज-मांजे में तब्दील हो रहा है। चाइनीज-मांजे वाली पतंग लोकतंत्र के आसमान में मासूम परिन्दों के लिए जानलेवा सिध्द होती जा रही है।

राष्ट्रवाद के कई ब्राण्ड भारतीय मार्केट में उपलब्ध हैं।राष्‍ट्रवाद का राजनीतिक धंधा सबसे ज्यादा प्रॉफिट वाला काम है। इसमें बौध्दिक, शारीरिक और गुंडई इन्वेस्टमेंट तत्काल भारी राजनीतिक-डिविडेंट देता है। ‘भक्ति-ब्राण्ड’ का राष्ट्रवाद अयोध्या के राम-मंदिर से भगवा पहन कर गृहमंत्री राजनाथ सिंह के नेतृत्व में कीर्तन करते हुए लाल किले पर जन-मिट्टी रथ-यात्रा के दौरान झांझ-मंजीरे और करताल बनाने में व्यस्त है। ‘शौर्य-ब्राण्ड’ का राष्ट्रवाद कश्मीर में पीडीपी के साथ मिलकर सीमाओं पर देश की सुरक्षा के तट-बंधों की सुरक्षा का बिगुल बजा रहा है। ‘सांस्कृतिक-ब्राण्ड’ इतिहास-भूगोल और साहित्य के तेवर और तथ्यों की अदला-बदली में लगा है, जहां हल्दी घाटी की लड़ाई में मुगल शहंशाह की जीत को महाराणा प्रताप की हार से बदला जा रहा है। ‘सामाजिक-ब्राण्ड’ के सेल्समेन स्वच्छ भारत का रोड-मेप बेचने में लगे हैं। ये सेल्समेन पार्ट-टाइम में राष्ट्रवादी सेल्समेन के रूप में गौ-संवर्धन की मार्केटिंग भी करते रहते हैं।

ओवैसी-प्रसंग में कमाण्डर देवराज अनबू के इस कथन पर गांठ लगाना जरूरी नहीं है कि ‘शहीद का कोई धर्म नहीं होता है।’ ये सेना के कायदे-कानूनों की बातें हैं। सिविल सोसायटी में राजनेता और राजनीति का अलग धर्म होता है, जहां ‘प्यार और जंग’ की तर्ज पर हर चीज जायज होती है। विडम्बना यह है कि राष्ट्रवाद की देहरी पर ‘धर्म में राजनीति और राजनीति में धर्म’ के अधर्म की आग के सामने हाथ तापते सब सुकून महसूस कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट में राम मंदिर-बाबरी मस्जिद के विवाद पर सुनवाई चल रही है। दूसरी ओर 28 साल बाद फिर अयोध्या से रामराज्य रथ यात्रा निकल पड़ी है जो 41 दिनों में 6 राज्यों की परिक्रमा करेगी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी अबूधाबी में पहले हिंदू-मंदिर का शिलान्यास करके लौट आए हैं। इस बीच राहुल गांधी ने भी मंदिरों में भगवान के दर्शन का सिलसिला शुरू कर दिया है। ऐसे मसलों पर सत्ता-संस्थानों से सवाल के मायने देशद्रोह है। गृहमंत्री राजनाथ सिंह से सवाल नहीं पूछा जाना चाहिए कि लाल किले से प्रारंभ जल-मिट्टी रथ यात्रा के बाद 108 कुंडीय महायज्ञ के लिए डोकलाम और सियाचीन से लाई गई मिट्टी से बना हवन-कुंड सैनिकों की सुरक्षा में कैसे कारगर सिध्द होगा?

 

सम्प्रति- लेखक श्री उमेश त्रिवेदी भोपाल एनं इन्दौर से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के प्रधान संपादक है। यह आलेख सुबह सवेरे के 16 फरवरी के अंक में प्रकाशित हुआ है।वरिष्ठ पत्रकार श्री त्रिवेदी दैनिक नई दुनिया के समूह सम्पादक भी रह चुके है।