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लोग देख रहे है कि सुरक्षा के मामले में राजनीति कौन कर रहा है ?- उमेश त्रिवेदी

उमेश त्रिवेदी

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के दो सवालों पर उव्देलित होकर आरोप लगा रही है कि देश की सुरक्षा से जुड़े संवेदनशील मुद्दों पर कांग्रेस की भूमिका गैर-जिम्मेदार और देशहित में नहीं है। राहुल की जिद है कि मोदी-सरकार राफेल लड़ाकू विमानों के सौदे में खुलासा करे कि विमानों को ज्यादा कीमत में क्यों खरीदा गया? दूसरा सवाल है कि केन्द्र-सरकार डोकलाम मामले में वस्तुस्थिति का खुलासा करे, क्योंकि सेटेलाइट के चित्र डोकलाम में चीन की सक्रियता की कहानी कह रहे हैं?

मोदी-सरकार का मत है कि सुरक्षा से जुड़े सवालों पर कांग्रेस को राजनीति नहीं करना चाहिए और सुरक्षा अथवा विदेश नीति के मुद्दों पर आम सहमति होना चाहिए। सवाल यह है कि राष्ट्रीय मुद्दों पर पक्ष-विपक्ष के बीच राजनीतिक समझदारी और साझेदारी का प्रवाह टूट क्यों रहा है? पक्ष-विपक्ष के बीच नासमझी की आग को बुझाने का दायित्व किसका है और इसे कैसे रोका जा सकता है? इसके लिए कौन जिम्मेदार है? प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी खुद, जिन्होंने राफेल-डील या डोकलाम  सुलहनामे को अंजाम दिया है या राहुल गांधी, जो सवाल उछाल रहे हैं? मोदी इसलिए असहज हैं कि जवाबदेही उनकी है। इनका खुलासा झुलसाने वाला है।

लोकतंत्र की परम्परा है कि संसद में संतुलन और देश में सद्भाव कायम रखना सत्तारूढ़ दल का दायित्व है। सूत्र-वाक्य है कि लोकतंत्र में सर्वानुमति बहुमत से ज्यादा महत्वपूर्ण और बड़ी होती है। नियम-कानून बहुमत को मान्यता देते हैं, लेकिन सामाजिक नैतिकता और आदर्श की परिकल्पनाएं सर्वानुमति के पक्ष में खड़ी होती हैं। देशहित के मसलों पर बहस जरूर हो, लेकिन निष्कर्षों में आम सहमति होना चाहिए। आम सहमति या सर्वानुमति मोदी-सरकार का स्वभाव नहीं है। मन-मुआफिक काम करने के लिए बहुमत और जनादेश होने के मायने यह नहीं हैं कि लोकतंत्र को सिर्फ एक पटरी पर ही दौड़ाया जाए। तकनीकी रूप से विपक्ष भले ही भाजपा के लिए बेमानी हो, नैतिक रूप से लोकतंत्र में जनता की पहरेदारी के लिए विपक्ष अपरिहार्य है। शासकों को उसे सम्मान देना चाहिए।

वर्तमान लोकसभा में औपचारिक नेता-प्रतिपक्ष महज इसलिए नहीं है कि कांग्रेस के सांसदों का संख्या-बल कम है। तकनीकी रूप से सही, मोदी-सरकार लोकतांत्रिक आदर्शों पर खरी सिध्द नहीं हो पा रही है। छोटे मन से काम करने वाली सरकारें देश हित के बड़े सवालों पर सबको सहेज सकें, सर्वानुमति बना सकें, यह संभव नहीं है। देश-हित के मसलों पर पक्ष-विपक्ष की जुगलबंदी को शाश्वत बनाने के लिए जवाहरलाल नेहरू जैसी संवेदनशीलता और अटलबिहारी वाजपेयी जैसा बड़प्पन जरूरी है। नेहरू से मोदी घृणा करते हैं और अटलजी का सीना छप्पन इंच से छोटा है। मोदी उनका अनुसरण करें, संभव नहीं है।

देशहित में दलगत राजनीति से ऊपर सोचने के उदाहरण मौजूद हैं। 1962 में चीन-आक्रमण और 1971 में बंगला देश युध्द के समय देश का राजनीतिक-सुर एक था। 14 नवम्बर 1962 के दिन लोकसभा ने ध्वनिमत से संकल्प लिया था कि चीन व्दारा हथियायी गई जमीन हर हाल में वापस ली जाएगी। बंगला देश की लड़ाई में अटलजी खुले मन से इंदिराजी के साथ खड़े थे। 1994 में लोकसभा ने पाक अधिकृत कश्मीर वापस लेने का सर्वसम्मत प्रस्ताव पारित किया था। प्रधानमंत्री मोदी को सोचना होगा कि अब ऐसा क्यों नही हो पा रहा है ?  प्रतिपक्ष तो दूर, उनकी पार्टी के लोग भी खुद को उनके विश्वास के दायरों से कोसों दूर खड़ा महसूस करते हैं। इस मामले में लोग नोटबंदी का उदाहरण भी देते हैं। राहुल के सवाल उनके स्वभाव को हिट करते हैं कि मोदी साफ करें कि राफेल डील की स्वीकृति कैबिनेट-समिति से ली गई थी या नहीं ली गई थी ?

राफेल-डील से जुड़े सवालों को मोदी-सरकार भले ही दो देशों के बीच कूटनीतिक-गोपनीयता की खोह में ढकेल दे, लेकिन डोकलाम मामले में लोकसभा की विदेशी मामलों की संसदीय समिति की बैठक अचानक रद्द करने के मामले में स्पष्टीकरण देना आसान नहीं होगा। पीटीआई के अनुसार लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने डोकलाम में चीनी दखल को लेकर 8 फरवरी को दोपहर 3 बजे आयोजित विदेशी मामलों की संसदीय समिति की बैठक अचानक रद्द कर दी। स्पीकर ने समिति के अध्यक्ष कांग्रेस सांसद शशि थरूर को पत्र लिखकर सूचित किया कि कुछ सदस्यों ने बहुत कम समय में बैठक बुलाने पर आपत्ति जताई थी। बजट पर भी महत्वपूर्ण चर्चा होना है और वित्तमंत्री बयान देने वाले हैं। इन कारणों से मैं आपको बैठक स्थगित करने के निर्देश देती हूं। बैठक में पूर्व विदेश सचिव श्याम सरन, पूर्व सेनाध्यक्ष दीपक कपूर और सेटेलाइट चित्रों के विशेषज्ञ विनायक भट्ट से जवाब-तलब होना था। विरोधाभास यह है कि 8 फरवरी को ही पिछड़े वर्गों से जुड़ी संसदीय समिति की बैठक के मामले में स्पीकर खामोश रहीं ।

लोग ध्यान से देख रहे हैं कि राष्ट्रीय सुरक्षा के कवच में राफेल लड़ाकू विमानों के सौदे में भ्रष्टाचार या डोकलाम-मामलों में आरोपों से बचने की भाजपाई रणनीति कितनी कारगर साबित होगी ? सुरक्षा के मामले में राजनीति कहीं खुद भाजपा तो नहीं कर रही है?

 

सम्प्रति- लेखक श्री उमेश त्रिवेदी भोपाल एनं इन्दौर से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के प्रधान संपादक है। यह आलेख सुबह सवेरे के 10 फरवरी के अंक में प्रकाशित हुआ है।वरिष्ठ पत्रकार श्री त्रिवेदी दैनिक नई दुनिया के समूह सम्पादक भी रह चुके है।