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अबूझ सवाल: कोई गांधी-वध की विरासत क्यों हासिल करना चाहेगा ? – उमेश त्रिवेदी

उमेश त्रिवेदी

राजघाट पर ‘रघुपति राघव राजाराम’ की सनातनी धुन में खलल डालने की कोशिशें सुप्रीम कोर्ट की  इस रिपोर्ट के बाद नाकाम हो गई हैं कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या के मामले की अब दुबारा जांच की जरूरत नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के एमिकस क्यूरी अमरेन्द्र शरण ने कागजातों को खंगाल कर याचिकाकर्ताओं की फोर्थ-बुलेट थ्योरी को खारिज कर दिया है। उन्होंने कोर्ट को बताया है कि गांधीजी की हत्या में नाथूराम गोडसे के अलावा किसी और के शामिल होने के सबूत नहीं मिले हैं। खुद को वीर सावरकर का भक्त बताने वाले अभिनव भारत के फाउंडर पंकज फडनीस ने सुप्रीम कोर्ट में दावा किया था कि महात्मा गांधी पर चार गोलियां चलाई गई थीं और उनकी मौत चौथी गोली से हुई, जिसे नाथूराम गोडसे ने नहीं चलाया था।

फडनीस की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व अतिरिक्त सॉलीसिटर जनरल अमरेन्द्र शरण को एमिकस क्यूरी (न्याय मित्र) बनाया था। शरण ने ट्रायल कोर्ट के 4000 दस्तावेज के अलावा गांधी हत्याकांड की जांच के लिए गठित जीवनलाल कपूर जांच आयोग की रिपोर्ट खंगालने के बाद कोर्ट में अपनी रिपोर्ट पेश की है। रिपोर्ट में इन आशंकाओं को भी खारिज किया गया है कि गांधी की हत्या में विदेशी एजेंसियों का हाथ था या गोडसे के अलावा किसी अन्य व्यक्ति ने उन पर गोली चलाई थी। मामले में 21 जून 1949 को कोर्ट ने गोडसे और आप्टे को फांसी की सजा दी थी। दोनों को 15 नवम्बर 1949 के दिन अंबाला जेल में फांसी पर टांग दिया गया था।

वैसे तो विवादों की कहानी काफी पुरानी है, लेकिन सुब्रमण्यम स्वामी ने 8 सितम्बर 2015 को एक ट्वीट करके गांधी हत्या कांड को चौराहे पर लाकर खड़ा कर दिया था। ट्वीट में स्वामी ने कहा था कि ‘मैं गांधी हत्याकांड केस को दुबारा खोलने की अपील कर सकता हूं, क्योंकि कुछ तस्वीरों में पाया गया है कि गांधीजी के शरीर पर गोलियों के चार जख्म हैं, जबकि केस तीन गोलियो पर चला था।’ सुब्रमण्यम स्वामी का तुगलकी-ट्वीट ट्रोल होने के बाद विवादों की लंबी श्रृंखला उभर कर सामने आई थी।

राजनीति की ‘कलर-स्कीम’ ऊपर से जितनी लुभावनी और आकर्षक होती है, भीतर से वह उतनी ही बदरंग और बदनुमा होती है। यह जान पाना असंभव है कि राजनीति की ‘कलर-स्कीम’ में कौन सा रंग कब काला दिखने लगेगा, कब काला रंग सफेद रंग का नकाब पहन कर सामने खड़ा हो जाएगा? राजनीति के रंगों में अवाम को आश्चर्यचकित कर देने की अद्भुत क्षमता होती है। पिछले दिनों उस वक्त राजनीति का काला रंग सफेद नकाब पहनकर सुप्रीम कोर्ट में खड़ा हो गया था जब यह कहा गया कि सत्तर साल पुराने गांधी हत्याकांड की जांच फिर से होना चाहिए।

खैरियत है कि सुप्रीम कोर्ट ने गांधी हत्याकांड की दुबारा जांच की पहल को खारिज करके एक बड़े ऐतिहासिक अनर्थ को टाल दिया है, लेकिन ऐतिहासिक दस्तावेजों में हत्यारे की फांसी को शहादत का दर्जा दिलाने की कोशिशों का सिलसिला थमने वाला नहीं है। हिन्दू महासभा इस सर्वविदित तथ्य पर इठलाती रहती है कि उनके नाथूराम गोडसे ने ही बापू की हत्या की थी। यह हत्या हमारी विरासत है। बीजेपी और आरएसएस इसे हमसे छीन नहीं सकते हैं। बापू की हत्या में चौथी गोली की बात करके दोनों संगठन संशय पैदा कर रहे हैं। उनके चेहरे पर से मुखौटे हटाने का वक्त आ गया है। गोडसे और हिन्दू महासभा का अभिन्न रिश्ता था। अब भाजपा या आरएसएस गोडसे को किनारे करके महात्मा गांधी से संबंधित सारी क्रेडिट खुद लेना चाहते हैं।

महात्मा गांधी भारतीय राजनीति के ‘पर्सेप्शन’ को प्रभावित करने वाली शख्सियत रहे हैं। आजादी के बाद दशकों तक गांधी-दर्शन को खारिज करने वाली भाजपा जैसी राजनीतिक ताकतें या संघ-परिवार को भी चाहे-अनचाहे गांधी की अवधारणाओं के आगे सिर झुकाना पड़ा है। कांग्रेस ने वर्षों तक राजघाट पर बैठ कर अपनी राजनीति को आगे बढ़ाने का काम किया है। यही नहीं, गांधी की विरासत को अपना बताने के लिए राहुल गांधी ने आरएसएस पर गांधी हत्या में शरीक होने का आरोप तक लगा दिया था। आरोपों को साबित करने के लिए आसएसएस ने राहुल को कोर्ट के कटघरे में खड़ा कर दिया था। भारत में सभी दल गांधी के पुण्य राजनीतिक सरोवर में गोताखोरी करना चाहते हैं।

राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक विरासत के अनगिनत झगड़ों की कथाओं से देश के इतिहास के पन्ने भरे पड़े हैं। माफियाओं के बीच डॉन बनने के शूट-आउट किस्से चौंकाते नहीं हैं, लेकिन एक स्वयंभू सांस्कृतिक संगठन का यह कृत्य चौंकाता ही नहीं, बल्कि हैरत में डालता है कि कोई संगठन महात्मा गांधी के हत्यारे और हत्या के दुखद अध्याय को अपनी ऐतिहासिक विरासत का हिस्सा मानकर गौरवान्वित महसूस करता है। यह अनहोनी राजनीति में ही संभव है।हिन्दू-राष्ट्रवाद की नई तपोभूमि में गांधी की हत्या की विरासत को हासिल करने की इस पहल को कैसे समझा जाए, यह विचार जरूरी है।

 

सम्प्रति – लेखक श्री उमेश त्रिवेदी भोपाल एनं इन्दौर से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के प्रधान संपादक है। यह आलेख सुबह सवेरे के 09 जनवरी के अंक में प्रकाशित हुआ है।वरिष्ठ पत्रकार श्री त्रिवेदी दैनिक नई दुनिया के समूह सम्पादक भी रह चुके है।