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कानून के अकेले प्रयास से नहीं रोक पायेंगें नारी उत्पीड़न को – रघु ठाकुर

रघु ठाकुर

16 दिसम्बर 2017 को देशभर में और विशेषतः बड़े शहरों में निर्भया दिवस मनाया गया। निर्भया दिवस इसलिए कि वर्ष 2012 में दिल्ली में एक लड़की के साथ बलात्कार हुआ था और इसके खिलाफ समूचे देश में एक आक्रोश पनपा था। उस समय केन्द्र में यू0पी0ए0 की सरकार थी तथा निर्भया कांड को महिला उत्पीड़न और सरकार की असफलता का दिखाकर अपना जनसमर्थन बनाने के लिए सभी विरोधी दल और सत्ता आकांक्षी दल सक्रिय थे। उस समय आम आदमी पार्टी सरकार में नहीं आयी थी और चुनाव में उतरने की भूमिका तैयार कर रही थी। इसलिए आम आदमी पार्टी के आज के सरकारी नेता भी निर्भया कांड के विरोध में काफी सक्रिय थे। हजारों लड़के लड़कियां दिल्ली राजधानी में सड़कों पर इकठ्ठे हो रहे थे और निर्भया को न्याय तथा बलात्कारियों को फांसी की मांग कर रहे थे। इससे चिन्तित होकर तत्कालीन सरकार ने पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जे0एस0 वर्मा कमेटी का गठन किया था और  नारियों पर हिंसा और अपराध रोकने के कड़े कानून बनना चाहिए। इस पर राय मांगी थी। जस्टिस वर्मा ने अपनी रपट में कड़ी सजा के प्रावधान सुझाये थे पर बलात्कारियों को फांसी के सुझाव से इन्कार किया था। वर्मा कमेटी की अनुशंसा के आधार पर कुछ कानून में सुधार हुए परन्तु महिला उत्पीड़न के अपराध नहीं रूके।

हमारे देश में अपराधों की याद को भी उत्सव जैसा मनाने का चलन चल पड़ा है।निर्भया कांड पर सर्वोच्च न्यायालय से अपराधियों को दण्ड दिया जा चुका है परन्तु कुछ संगठनों और दलों को निर्भया कांड की बरसी का पर्व अभी भी उस घटना की याद कराता है।

महिलाओं के प्रति अपराध घटने की बजाय बढ़े है और फांसी देने का लोक लुभावन नारा भी हवा में गर्म रहता है चूंकि शायद लोगों के मष्तिष्क में मृत्यु दण्ड ही सबसे बड़ा और प्रभावकारी दण्ड है इसलिए जब भी ऐसी कोई घटना मीडिया में चर्चित होती है तो राजनेताओं से लेकर सामाजिक कार्यकर्ता, मीडिया से लेकर स्वयं सेवी संगठनों तक सभी एक सुर से फांसी दो-फांसी दो का नारा लगा देते है। पहले भी कुछ प्रकरणों में जहां बलात्कार और हत्या साथ साथ हुई बलात्कारियों को फांसी दी गई इसके बावजूद भी फांसी ऐसे जघन्य अपराधों को रोक नहीं सका।

कुछ दिनों पहले जब भोपाल में सामूहिक बलात्कार की घटना हुई तो मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सरकार की बिगड़ी छवि की क्षतिपूर्ति के लिए एलान कर दिया कि बलात्कारियों को कानून में मृत्युदण्ड का प्रावधान किया जायेगा। जब उनके मंत्रिमंडल में ऐसा प्रस्ताव आया तो कुछ वरिष्ठ समझदार मंत्रियों ने समझाया कि इससे ग्रामीण इलाकों में बलात्कार के झूठे मामले बन सकते है और नये प्रकार के सामाजिक तनाव हो सकते है। तब उन्होंने यूटर्न लेते हुए 7 वर्ष की बच्चियों के साथ बलात्कार होने पर मृत्युदण्ड का प्रावधान किया।उनके इस कानून के बाद म0प्र0 के ही सागर जिले के भानगढ़ के ग्राम देवल में एक छात्रा के साथ सामूहिक बलात्कार की घटना हुई और फिर उसे जला दिया गया। इस घटना पर भी समाज में व्यापक प्रतिक्रिया होना स्वाभाविक था और मुख्यमंत्री जी ने अब फिर से यूटर्न लेकर कहना शुरू किया है कि अपराध केवल कानून से नहीं रोका जा सकता। मात्र एक माह के अन्दर ही फांसी से शुरू होकर सामाजिक चेतना की भूमिका पर पहुंच गये। कुछ भी हो हमें मुख्यमंत्री के इस कौशल को मानना होगा कि वे जनआक्रोश का सामना करने के लिए आवश्यकतानुसार कोई भी जिम्मेदार या गैरजिम्मेदार बयान दे सकते है।बड़े से बड़ा झूठ हंसते मुस्कुराते बोल सकते है।

यह मामला अकेले शिवराज सिंह चौहान का नहीं है बल्कि देश के अन्य सूबो में भी सत्ता लोलुप वाक क्रान्तिकारियों का यही हाल है। 16 दिसम्बर 2017 को दिल्ली में निर्भया की बरसी के आयोजन में मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल शरीक हुए तथा अपने स्वभाव के अनुसार उन्होंने अपनी सरकार के गुणों का बखान शुरू किया। वर्ष 2012 में जब निर्भया कांड हुआ तब भी केजरीवाल उसके खिलाफ काफी मुखर थे और सरकार के विरूद्ध तथा जनभावना के शोषण के माध्यम से अपने वोटो के खेल में लगे हुए थे। उनके आत्मप्रशंसायुक्त भाषण के समय पीछे से महिलाओं ने खड़े होकर उनका विरोध किया और कहा आपने कुछ नहीं किया। गरीब पिछड़े इलाकों में महिलाओं की सुरक्षा के लिए बिजली तक नहीं है। सीसीटीबी कैमरा लगाने का वायदा किया था वे कही नहीं लगे। और अन्त में जब विरोध प्रबल हो गया तो केजरीवाल को अपनी गलती स्वीकार करना पड़ी तथा वापिस होना पड़ा। यह एक विचित्र तथ्य है कि श्री चौहान और श्री केजरीवाल अच्छे मित्र है और शायद इसलिए लोगों को गुमराह करने का साहसपूर्ण साम्य दोनों में समान है।

यहां कुछ उन घटनाओं का जिक्र किया है जो कमोवेश मीडिया में चर्चित हुई। परन्तु हमारे ग्रामीण समाज में ऐसी बहुत सी नारी उत्पीड़न की घटनायें आये दिन होती है जिनकी चर्चा मीडिया में नहीं हो पाती या फिर उतनी प्रमुखता से उन्हें नहीं उठाया जाता। बड़े शहरों मुम्बई, बैंगलोर, कलकत्ता, दिल्ली भोपाल आदि में घटित घटनाओं पर तो मीडिया का फोकस ज्यादा हो पाता है वनिस्पत ग्रामीण कमजोर समाज के इलाकों के।

बहरहाल मूल प्रश्न यह है कि

  1. क्या सरकार और कानून ऐसी घटनाओं को अंतिम रूप से रोक सकते है।क्या बड़े से बड़ा दण्ड भी ऐसी घटनाओं को रोक सकता है।
  2. या फिर समाज को और परिवारों को भी कुछ विशेष भूमिका अदा करनी होगी।
  3. 3. दिसम्बर 2017 को मैं नागपुर में था तथा हमारे पुराने समाजवादी साथी श्री उमेश चौबे के निमंत्रण पर गूंज नामक नवगठित संस्था के कार्यक्रम में शामिल हुआ था।गूंज नागपुर के महिला संगठनों की और जागरूक महिलाओं की पहल पर बना एक सामाजिक संगठन है जिसने नारियों के विरूद्ध अपराध रोकने के लिए विचार और विरोध पर पहल शुरू की है जो कि सराहनीय है। इस कार्यक्रम में मैंने उपस्थित बहनों के समक्ष कहा था कि कड़े से कड़ा कानून और फांसी भी महिला उत्पीड़न के मामले को समूचा नहीं मिटा सकती। मैंने उन्हें पुराने यूरोप का उदाहरण देकर बताया था कि एक जमाने में जबकि जेबकटी पर फांसी होती थी और फांसी भी खुले प्रदर्शन के साथ दी जाती थी। तथा यह तथ्य है कि जो लोग जेबकतरो को फांसी देखने इकठ्ठे होते थे उसी भीड़ में उनकी भी जेब कट जाती थी और जेब कट को कोई भय नहीं होता था, और अपराध नहीं रूका था। इसलिए केवल फांसी जैसी मांगों से अपराध कुछ कम तो हो सकते है परन्तु अंतिम रूप से समाप्त नहीं हो सकते।

नारी उत्पीड़न को रोकने के लिए समाज में दृष्टि बदलना होगी और बड़ी सामाजिक पहल शुरू करना होगी। अगर समाज इन अपराधों के बारे में अपने दायित्व को समझेगा तो कुछ बदलाव होंगें। अगर बलात्कार करने वाले अपराधियों को दण्ड दिलाने के लिए उनके ही माता-पिता साहस के साथ आगे आये अपने बेटों की गल्तियों को स्वीकारे और उसे दण्डित करने की मांग करे तो एक बड़ा फर्क पड़ सकता है। परन्तु अपवाद छोड़कर अमूमन अपराधियों को माता-पिता और परिजन उन्हें बचाना अपना फर्ज समझते है। अपने अपराधी बेटों को बचाने के लिए आगे आते है और एक प्रकार से सब कुछ दाव पर लगा देते है। जब समाज ही अपराधियों को बचाने के लिए सक्रिय रहेगा तो फिर अपराध कैसे रूकेंगें। मुझे एक घटना का स्मरण है जिसमें एक व्यक्ति ने अपने अनैतिक और अवैधानिक संबंधों का विरोध करने पर अपनी पत्नी की हत्या कर दी। यह जानते हुए कि उसने अपनी पत्नी की हत्या की है कुछ प्रतिष्ठित लोगों ने अपनी मित्रता और आर्थिक संबंधों के आधार पर उसके पक्ष में गवाही दी थी। उसे अपराध की सजा से बचाया तब मैंने उन मित्रो से पूछा कि आपके इस काम के बाद आपकी झूठी गवाही सफाई के बाद आपकी पत्नि और बच्चों के मन में आपके प्रति कोई नैतिक सम्मान रहेगा। पुरूष प्रधान मानसिकता से ग्रसित समाज के लिए नारियों और पत्नियों की हत्या कभी भी मानसिक पीड़ा नहीं देती और न ही उन्हें उद्वेलित करती। निर्भया और ऐसी अन्य घटनाओ के बाद भी जो विरोध सामने आता है उसमें बढ़ा हिस्सा तो राजनैतिक विरोध का होता है। जब उनकी अपनी सरकार होती है तब वे उस प्रकार का मुखर विरोध नहीं करते। दिल्ली के जैसिका लाल हत्याकांड (तन्दूर कांड) का विरोध उस जमाने के सत्ता दल के लोगों ने लगभग नहीं किया था।थोड़ी बहुत औपचारिकता पूरी की थी। इन कांडों के अपराधियों के परिजनों ने भी छिपाने बचाने का पूरा प्रयास किया।

दरअसल नारी उत्पीड़न के पीछे पुरूषवादी मानसिकता, पुरूष श्रेष्ठता की मानसिक विकृतियां है। आजकल सामूहिक बलात्कार की घटनायें बढ़ रही है और क्या उनके पीछे फिल्मों और मीडिया की भूमिका नहीं होती ? हमारे देश की फिल्में नाना प्रकार से भोग की इतनी लालसा बढ़ा रही है कि आम युवकों के मन में सर्प के समान जहरीली भावना बन जाती है तथा उन्हें अपराध के लिए प्रेरित करती है। दूसरे आये दिन बढ़ते व्यसन का प्रचलन भी युवकों को अपराधी और उत्तेजक बना रहा है। नशे को रोकने के लिए सरकारों का कोई प्रयास नहीं है क्योंकि नशे का व्यापार सरकारों की आय का साधन बन गया है। तथा राजनेताओं के लिए भ्रष्टाचार की कमाई का। नारी उत्पीड़न और अपराधों को रोकना है तो मेरी राय में कानून और न्याय की तत्परता के साथ साथ निम्न मुद्दों पर सोचना होगा –

  1. परिवार के मुखिया अपने बच्चों को संस्कारित बनाने का दायित्व ले।
  2. शिक्षण संस्थाओं के पाठ्यक्रमों में सामाजिक मूल्यों का एक विषय अनिवार्य हो।

3.किसी भी ऐसे अपराध की घटना में अपराधी के परिजन उसे दण्ड दिलाने के लिए स्वतः आगे आये।

4.त्वरित न्याय के लिए विशेष न्यायालय बनाये जाये जो हर हालत में अधिकतम दो माह में ऐसे मुकदमों का निराकरण करे तथा इसके लिए कानून में आवश्यक सुधार किया जाये।

5.फिल्म और मीडिया तथा इलेक्ट्रानिक मीडिया बड़ी तेजी से बड़ी आबादी तक पहुंचता है और इसलिए इनके संगठनों के सुझाव पर ऐसे कायदे बनाये ताकि युवा मन अपराधी न बने बल्कि उसके खिलाफ हो।

6.शिक्षाप्रद घटनाओं पर फिल्में बनायी जाये, लेखन हो और प्रकाशन हो। भोग प्रेरक प्रकाशन और फिल्में बंद हो।

7.शराब, गांजा, अफीम और सभी प्रकार के नशा पर पूर्ण रोक लगे तथा इनका प्रयोग करने वाले लोगों पर दण्ड की व्यवस्था हो पर दण्ड की व्यवस्था के साथ-साथ उनके सामाजिक बहिष्कार की परम्परा शुरू हो। महिला उत्पीड़न के मामलों में महिलाओं को बचाने वाले या जोखिम लेकर गवाही देने वाले को सरकार, समाज सम्मानित एवं पुरूष्कृत करे।

अगर उनके साथ इन कारणों से कोई अपराधिक घटना या हमला आदि हो तो शासन उन्हें विशेष सुविधा दे ताकि समाज में अपराध के खिलाफ लड़ने और खड़े होने की भावना बलवती हो।

8.आबादी वृद्धि भी यौन अपराधों के लिए एक बड़ा कारण बन रही है और अब इस पर गंभीरता से विचार कर सभी को मिलकर सोचने की और कदम उठाने की आवश्यकता है।

9.नारी उत्पीड़न की शिकायतों को दर्ज न करने को अपराधिक कृत्य माना जाये तथा दोषी पर कार्यवाही कर मुकदमा चले।

 

सम्प्रति- लेखक श्री रघु ठाकुर देश के जाने माने समाजवादी चिन्तक है।वह स्वं राममनोहर लोहिया के अनुयायी है और लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के संस्थापक भी है।