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विमान अपहरण करने से चर्चित हुए देवेन्द्र पांडे,थे बेहद सौम्य और विनम्र – राज खन्ना

स्वं देवेन्द्र पांडेय

स्व.देवेन्द्र पाण्डे पहला चुनाव 1977 में निर्दलीय लड़े थे।लोकसभा का यह चुनाव था।साइकिल उनका निशान था और प्रचार के लिए उनके पास स्कूटर था। कभी वह स्कूटर चलाते और कभी उनका सहयात्री। कन्धे पर माइक सिस्टम। जहाँ-तहाँ रुक कर भाषण देते दिख जाते। मतदाताओं ने तब उन्हें गंभीरता से नहीं लिया था। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। लम्बी तैयारी में थे। और फिर अचानक 20 दिसम्बर 1978 को सुर्ख़ियों में आ गए। दूरदर्शन की पहुंच सीमित थी। नेट- मोबाईल का जमाना नहीं आया था। आकाशवाणी सबसे जल्दी खबर देने-पाने का माध्यम था।उसी से लोगों को लखनऊ – दिल्ली के बीच की एक घरेलू उड़ान के बोईंग विमान के अपहरण की खबर मिली। जिन दो लोगों ने विमान अपहरण करके उसे दिल्ली की जगह वापस लाने और फिर वाराणसी के बाबतपुर हवाई अड्डे पर उतरने के लिए मजबूर किया था, उनमे सुल्तानपुर के देवेन्द्र पांडे और बलिया के उनके साथी भोला पांडे शामिल थे।देवेन्द्र जी की तब उम्र 28 साल थी।

यह वक्त जनता पार्टी के शासन का था। आपातकाल के बाद 1977 की जनता लहर में पूरे उत्तर भारत में कांग्रेस का लगभग सफाया हो गया था। शाह कमीशन आपात काल की ज्यादतियों की जांच में लगा था। इंदिरा जी-संजय गांधी पर मुकदमे शुरू हो गए थे। चिकमंगलूर से जीत के बाद इंदिरा जी की लोकसभा की सदस्यता समाप्त कर दी गई थी। उनकी गिरफ्तारी भी हुई थी।संजय ब्रिगेड अदालतों और सड़कों दोनों मोर्चों पर जूझ रही थी।

अविभाजित सुल्तानपुर जिले का उस समय अलग महत्व था। आपात काल में संजय गांधी की अमेठी में सक्रियता और फिर 1977 में वहां से चुनाव लड़ने के कारण जिले के अनेक युवा नेता उनके नजदीक थे। देवेन्द्र पांडे उसमे शामिल नहीं थे। लेकिन गांधी परिवार की हिमायत में अपने साथी के साथ विमान अपहरण करके उन्होंने इस परिवार की नजदीकी हासिल करने में बहुतों को पीछे छोड़ दिया था।

          राज खन्ना

जिस उड़ान का अपहरण किया गया वह उस शाम पौने छह बजे दिल्ली के लिए उड़ी थी। 132 यात्री सवार थे। तब सतर्कता-सुरक्षा के इतने बंदोबस्त नहीं थे। कॉकपिट में पहुँच दोनों ने पायलट को अर्दब में ले लिया।जिद थी विमान को नेपाल ले जाने की।ईंधन की किल्लत के हवाले से पायलट उन्हें बाबतपुर में विमान उतरने देने के लिए राजी कर सके थे। उनकी मांगें थीं कि इंदिरा जी-संजय गांधी के खिलाफ मुकदमे वापस लिए जाएँ। इंदिरा जी की रिहाई। उनकी लोकसभा सदस्यता बहाल करने। सरकार का इस्तीफा और इन सबके लिए बातचीत के लिए उ.प्र. के मुख्यमंत्री की मौजूदगी। विमान अपहरण की सूचना इंदिरा-संजय को देने और आकाशवाणी से प्रसारण के साथ ही वी आई पी लाउंज में प्रेस कांफ्रेंस का इंतजाम करने की भी जिद थी। तब के मुख्यमंत्री राम नरेश यादव को बातचीत के लिए बाबतपुर पहुंचना पड़ा था।।पुलिस देवेन्द्र जी के पिता सुरसरि दत्त पांडे को भी ले गई थी। रात भर ड्रामा चला। यात्रियों को दोनों पांडे ने संबोधित करते हुए मकसद बताया। कोई नुकसान न पहुँचाने का भरोसा दिया। भोर में दोनों  इंदिरा जी- संजय गांधी के समर्थन में और जनता पार्टी की सरकार के खिलाफ नारे लगाते निकले। जिस पिस्टल के जरिये इतना बड़ा कांड अंजाम हुआ वह खिलौना थी। 

1980 में देवेन्द्र पांडे सुल्तानपुर की जयसिंहपुर सीट से विधायक चुने गए। 1985 में फिर जीते। 1989 में वह जनता दल के सूर्यभान सिंह के मुकाबले चुनाव हार गए थे। पार्टी ने उन्हें प्रदेश में महामन्त्री बनाया। कुछ और भी जिम्मेदारियां दीं लेकिन फिर चुनाव लड़ने का मौका नहीं दिया। लम्बे अर्से से वह लखनऊ में ही रह रहे थे। अपने गृह जनपद में उनकी सक्रियता काफी कम हो गई थी। शारदा प्रसाद श्रीवास्तव जैसे पुराने साथियों के जरिये लोग उनका और वह लोगों का हाल चाल लेते रहे। विमान अपहरण से उनकी जो छवि बनी थी ,उसके ठीक उलट बेहद सौम्य और विनम्र- मिलनसार थे देवेन्द्र जी। उम्र के जोश और अपने नेता की भक्ति में विमान अपहरण का दुस्साहस उन्होंने भले किया हो लेकिन निजी और सामाजिक जिंदगी में वह बेहद शांतिप्रिय और अनुशासित थे। जनप्रतिनिधि के रूप में वह अपने अच्छे व्यवहार और संवाद के लिए जाने गए। जिले की उस पीढ़ी की अगली कतार में वह थे जिसके दो महत्वपूर्ण सदस्यों राम सिंह और अशोक पांडे को जिले ने हाल ही में खोया है। शनिवार को देवेन्द्र जी के निधन के साथ यह रिक्तता और बढ़ गई।

विमान अपहरण की घटना के बाद माना गया कि यह काम उन्होंने निजी राजनीतिक फायदे के लिए किया। लगभग चार दशक के राजनीतिक सफर में देवेन्द्र जी ने इसे गलत साबित करके दिखाया। वह अंत तक उसी पार्टी  और उसी परिवार के बनकर रहे। एक बार टिकट नही मिलने पर पाला बदल देने वाले चाहें तो याद कर लें कि पार्टी ने उन्हें 1989 के बाद फिर मौका नहीं दिया। फिर भी उनकी निष्ठा नहीं डिगी। उन्होंने एक सरगर्म जिंदगी जी। लोग याद करेंगे।

 

सम्प्रति- लेखक राज खन्ना वरिष्ठ पत्रकार है। एक राष्ट्रीय हिन्दी दैनिक से वर्षो से जुड़े श्री खन्ना के समसामयिक विषयों पर आलेख निरन्तर छपते रहते है।