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यहां जाने कानपुर-अटल बिहारी वाजपेयी से जुड़ी कुछ रोचक बाते

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की आज पुण्यतिथि है और कानपुर से उनका खास जुड़ाव रहा है। शहर के लोगों में उनकी यादें बसी हैं। आइए आपको कानपुर और अटल बिहारी वाजपेयी से जुड़ी कुछ रोचक बताते हैं…।

कानपुर में गुजरा छात्र जीवन, पिता भी रहे सहपाठी

  • पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी वैसे तो आगरा जिले बटेश्वर गांव में जन्मे थे लेकिन उनका ज्यादातर जीवन कानपुर में गुजरा।
  • उन्होंने 1945 में कानपुर के दयानंद एंग्लो वैदिक डीएवी डिग्री कॉलेज में राजनीति शास्त्र में मास्टर्स आफ आर्ट्स में दाखिला लिया था।
  • पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी डीएवी कॉलेज में बने हॉस्टल के कमरा नंबर 104 में रहते थे।
  • वर्ष 1947 में राजनीति शास्त्र से एमए की पढ़ाई पूरी करके डिग्री हासिल ली थी।
  • अटल जी ने एमए की पढ़ाई पूरी करने के बाद 1948 में डीएवी कालेज में एलएलबी में दाखिला लिया था।
  • अटल जी के साथ सरकारी नौकरी से अवकाश प्राप्त उनके पिता पं. कृष्णबिहारी लाल वाजपेयी ने भी एलएलबी करने का फैसला कर लिया।
  • एक साथ पढ़ाई करने के साथ अटल जी के साथ हास्टल के कमरे में पिता भी रहते थे।
  • विद्यार्थियों की भीड़ उन्हें देखने आती तो पिता-पुत्र एक ही कक्षा में बैठकर पढ़ाई करते थे।
  • पिताजी के देर से आने पर प्रोफेसर अक्सर उनसे मजाकिया अंदाज में पूछते थे कि- कहिए आपके पिताजी कहां गायब हैं?
  • अटल जी को देर होती तो पिताजी से पूछते थे कि आपके साहबजादे कहां नदारद हैं?
  • बाद में अटल जी ने अपना सेक्शन बदलवा लिया था और फिर अलग कक्षा में पढ़ाई करने लगे थे।

नहीं पूरी की एलएलबी की पढ़ाई और राजनीति में सक्रियता बढ़ाई

  • अटल बिहारी बाजपेयी ने डीएवी कालेज में एलएलबी की पढ़ाई बीच में छोड़ दी।
  • हास्टल के कमरे में रोजाना बैठकें होना शुरू हो गईं और राजनीतिक मुद्दों पर बहस छिड़ने पर वह बेबाकी से अपनी बात रखते थे।
  • कॉलेज में अटल जी का भाषण सुनने के लिए बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं एकत्र हो जाते थे।
  • एलएलबी की पढ़ाई छोड़ने पर उन्हें राजनीतिक दायित्व निभाने के लिए जनसंघ ने लखनऊ बुला लिया था।

कविताएं सुनकर झूम उठता था कालेज

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई में बचपन से एक कवि छिपा हुआ था और वह अपनी बातों को भी अक्सर कविताओं में बयां करते थे। वह वीर रस और शृंगार रस में कविताओं से सहपाठियों और प्रफेसरों के दिलों को छू लेते थे। कॉलेज के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में वह कविताओं की झड़ी लगा देते थे और सुनने वाले झूम उठते थे।